प्रकृति एवं मानवस्य संबंध: किदृश: अस्ति ?
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जहाँ हर्षचरितम् आख्यायिका के लिए आदर्शरूप है वहाँ गद्यकाव्य कादम्बरी कथा के रूप में। बाण के ही शब्दों में इस कथा ने पूर्ववर्ती दो कथाओं का अतिक्रमण किया है। अलब्धवैदग्ध्यविलासमुग्धया धिया निबद्धेय-मतिद्वयी कथा-कदम्बरी। सम्भवतः ये कथाएँ गुणाढ्य की बृहत्कथा एवं सुबन्धु की वासवदत्ता थीं।
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