प्रकृति ही भगवान के संदेश विश्वबंधुत्व को समझ पाई हैं , मानव नहीं स्पष्ट कीजिए।
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भगवान की बनाई इस दुनिया में मनुष्य ने ही स्वयं को बाँटा है इसलिए ये चिट्ठियाँ वे नहीं पढ़ पाते केवल प्रकृति ही इसे पढ़ पाती है क्योंकि नदी, जल, हवा, अपनी ठंडक, पेड़-पौधें, फूल अपनी सुगंध समान भाव से बाँटते हैं। ये एकता, मेल, सद्भावना का संदेश देते हैं।
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कवि का कहना है कि पक्षी और बादल भगवान के डाकिए हैं। जिस प्रकार डाकिए संदेश लाने का काम करते हैं, उसी प्रकार पक्षी और बादल भगवान का संदेश लाने का काम करते हैं। पक्षी और बादल की चिट्ठियों में पेड़-पौधे, पानी और पहाड़ भगवान के भेजे एकता और सद्भावना के संदेश को पढ़ पाते हैं। इसपर अमल करते नदियाँ समान भाव से सभी लोगों में अपने पानी को बाँटती है। पहाड़ भी समान रूप से सबके साथ खड़ा होता है। पेड़-पौधें समान भाव से अपने फल, फूल व सुगंध को बाँटते हैं, कभी भेदभाव नहीं करते।
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