प्रकृति हमें हर रूप में शिक्षा देती है। हम फूलों, भँवरों, हवा, पानी, वृक्षों
सकते हैं। हमें इनसे प्रेरणा ग्रहण करनी चाहिए।
फूलों से नित हँसना सीखो, भौंरों से नित गाना।
तरु की झुकी डालियों से नित सीखो शीश झुकाना।।
सीख हवा के झोकों से लो, कोमल भाव बहाना।
दूध और पानी से सीखो, मिलना और मिलाना।।
सूरज की किरणों से सीखो, जगना और जगाना।
लता और पेड़ों से सीखो, सबको गले लगाना।।
वर्षा की बूंदों से सीखो, सबसे प्रेम बढ़ाना।
मेहंदी से सीखो, सब ही पर अपना रंग चढ़ाना।।
मछली से सीखो, स्वदेश के लिए तड़पकर मरना।
पतझड़ के पेड़ों से सीखो, दु:ख में धीरज धरना।।
पृथ्वी से सीखो, प्राणी की सच्ची सेवा करना।
दीपक से सीखो, जितना हो सके अँधेरा हरना।।
जलधारा से सीखो, आगे जीवन पथ पर बढ़ना।
और धुएँ से सीखो, हरदम ऊँचे ही पर चढ़ना।।
-श्रीनाथ सिंह
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प्रकृति हमें हर रूप में शिक्षा देती है। हम फूलों, भँवरों, हवा, पानी, वृक्षों
सकते हैं। हमें इनसे प्रेरणा ग्रहण करनी चाहिए।
फूलों से नित हँसना सीखो, भौंरों से नित गाना।
तरु की झुकी डालियों से नित सीखो शीश झुकाना।।
सीख हवा के झोकों से लो, कोमल भाव बहाना।
दूध और पानी से सीखो, मिलना और मिलाना।।
सूरज की किरणों से सीखो, जगना और जगाना।
लता और पेड़ों से सीखो, सबको गले लगाना।।
वर्षा की बूंदों से सीखो, सबसे प्रेम बढ़ाना।
मेहंदी से सीखो, सब ही पर अपना रंग चढ़ाना।।
मछली से सीखो, स्वदेश के लिए तड़पकर मरना।
पतझड़ के पेड़ों से सीखो, दु:ख में धीरज धरना।।
पृथ्वी से सीखो, प्राणी की सच्ची सेवा करना।
दीपक से सीखो, जितना हो सके अँधेरा हरना।।
जलधारा से सीखो, आगे जीवन पथ पर बढ़ना।
और धुएँ से सीखो, हरदम ऊँचे ही पर चढ़ना।।
-श्रीनाथ सिंह
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