प्रकृति का बदलता स्वरूप पर अनुच्छेद
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प्रकृति सभी के जीवन का महत्वपूर्ण और अविभाज्य अंग है। खूबसूरत प्रकृति के रुप में भगवान के सच्चे प्यार से हम सभी धन्य है। कुदरत के सुख को कभी गँवाना नहीं चाहिये। कई प्रसिद्ध कवियों, लेखक, पेंटर, और कलाकार के कार्य का सबसे पसंदीदा विषय प्रकृति होती है। प्रकृति भगवान की बनायी सबसे अद्भुत कलाकृति है जो उसने बहुमूल्य उपहार के रुप में प्रदान की है। प्रकृति सब कुछ है जो हमारे आसपास है जैसे पानी, हवा, भूमि, पेड़, जंगल, पहाड़, नदी, सूरज, चाँद, आकाश, समुद्र आदि। कुदरत अनगिनत रंगों से भरी हुई है जिसने अपनी गोद में सजीव-निर्जीव सभी को समाहित किया है।
भगवान के द्वारा प्रकृति में सभी को अपनी शक्ति और विशिष्टता उपलब्ध करायी गई है। इसमें इसके कई रुप है जो मौसम दर मौसम और यहाँ तक कि मिनट दर मिनट बदलते रहते है जैसे समुद्र सुबह के समय चमकीला नीला दिखाई देता है लेकिन दोपहर के समय हरित मणी रंग सा दिखाई पड़ता है। आकाश पूरे दिन अपना रंग बदलता रहता है सूर्योदय में पीला गुलाबी, दिन के समय आँखे चौंधियाने वाला नीला रंग, चमकदार नारंगी सूर्यास्त के समय और रात के समय बैंगनी रंग का। हमारा स्वाभाव भी प्रकृति के अनुसार बदलता है जैसे खुश और आशावादी सूरज के चमकने के समय, बरसात के समय और वसंत के समय। हम चाँदनी रोशनी में दिल से खुशी महसूस करते है, तेज धूप में हम ऊबा हुआ और थका महसूस करते है।
कुदरत के पास कुछ परिवर्तनकारी शक्तियाँ है जो हमारे स्वाभाव को उसके अनुसार बदलते है। रोगी को अपनी बीमारी से बाहर निकलने के लिये प्रकृति के पास शक्ति है अगर उनको जरुरी और सुहावना पर्यावरण उपलब्ध कराया जाये। हमारे स्वस्थ जीवन के लिये प्रकृति बहुत जरुरी है। इसलिये हमें इसको खुद के लिये और अगली पीढ़ी के लिये संरक्षित रखना चाहिये। हमे पेड़ों और जंगलों को नहीं काटना चाहिये, हमें अपने गलत कार्यों से महासागर, नदी और ओजोन परत को नुकसान नहीं पहुँचाना चाहिये, ग्रीन हाउस गैस को नहीं बढ़ाना चाहिये तथा अपने निजी स्वार्थों के कारण पर्यावरण को क्षति नहीं पहुँचाना चाहिये। हमें अपने प्रकृति के बारे में पूर्णत: जागरुक होना चाहिये और इसको बनाए रखने का प्रयास करना चाहिये जिससे धरती पर जीवन हमेशा संभव हो सके।