Hindi, asked by s15629aashifa03634, 19 days ago

प्रकृति का संतुलन बिगाड़ने की दिशा में मनुष्य दो - तीन सौ वर्षों के दौरान इतना अधिक बढ़ चुका है कि अब पीछे हटना असंभव - सा लगता है । जिस गति से हम विभिन्न क्षेत्रों में प्राकृतिक संतुलन बिगाड़ते रहे हैं उनमें कोई भी कमी व्यावहारिक नहीं प्रतीत होती , क्योंकि हमारी अर्थव्यवस्थाएँ और दैनिक आवश्यकताएँ उस गति के साथ जुड़ - सी गई हैं । क्या हमें ज्ञात नहीं कि जिसे हम अपना आहार समझ रहे हैं , वह वस्तुतः हमारा दैनिक विष है जो सामूहिक आत्महत्या की दिशा में हमें लिए जा रहा है । जंगलों को ही लो । यह एक प्रकट तथ्य है कि विभिन्न देशों की वन - संपत्ति अत्यंत तीव्र गति से क्षीण होती जा रही है । भारत के विभिन्न प्रदेशों - विशेषकर पूर्वांचल के राज्यों , तराई उत्तर प्रदेश , हिमाचल प्रदेश आदि के जंगल भारी संख्या में काटे जा रहे हैं । खूब अच्छी तरह यह जानते हुए भी कि जंगलों को काटने का मतलब होगा भूमि को अरक्षित करना , बाढ़ों को बढ़ावा देना और मौसम के बदलने में सहायक बनना ।
प्रश्न 1.. हमारा दैनिक विष क्या है ? *
( क ) तंबाकू सेवन
( ख ) मदिरा सेवन
( ग ) भोज्य पदार्थ
( घ ) शीतल पेय
प्रश्न 2 . जंगलों को काटने का क्या मतलब होगा ? *
( क ) खेत बनाना
( ख ) भूमि को अरक्षित करना
( ग ) फर्नीचर बनाना
( घ ) रास्ता बनानाप्रश्न
3 . ' क्षीण ' शब्द का अर्थ है| *
( क ) बलवान
( ख ) संतुलन
( ग ) छाया
( घ ) नष्ट
प्रश्न 4 . इस गद्यांश का उपयुक्त शीर्षक है | *
( क ) प्रकृति का असंतुलन
( ख ) जंगलों की अंधाधुंध कटाई
( ग ) वृक्षारोपण
( घ ) हमारी वन -
संपत्तिनिम्नलिखित में से जंगल का पर्यायवाची हैं ? *
तरनी
नद
कूलंकषा
कान्तार​

Answers

Answered by tirth71000
4

Answer:

explain biomass energy dtx-ytjv-roj

Answered by kajal503921
0

मनुष्य

मदिरा सेवन

भूमि को आरक्षित करना

सतुलनसंतुलन जगलो की अंधाधुध कटाई

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