प्रकृति का संतुलन बनाए रखने जीव-जंतुओं का संरक्षण आवश्यक:
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भोजन की थाली में दाल, चावल, अचार, सलाद, सब्जी आदि व्यंजन होने से वह शरीर के लिए पौष्टिक माना जाता है। ठीक इसी तरह प्रकृति में जीव-जंतुओं व वनस्पति का संतुलन बना रहने से वह मनुष्य के लिए न केवल जीवन दायनी बन जाती है, बल्कि उनकी आर्थिक उन्नति में भी सहायक है। मानव हस्तक्षेप के कारण वर्तमान में प्रकृति (नैसर्गिक संपदा) का दोहन हो रहा है। फलस्वरूप ग्लोबल वार्मिंग जैसे दुष्परिणाम हमारे सामने हैं।
यह बात शनिवार को न्यू हाउसिंग बोर्ड स्थित एक सभागार में आयोजित जैव विविधता संगोष्ठी में सामाजिक कार्यकर्ता देवेंद्र सिंह भदौरिया कह रहे थे। कार्यक्रम का आयोजन धरती संस्था द्वारा कराया गया। इस संगोष्ठी में एक सैंकड़ा से अधिक ग्रामीण एवं 150 छात्र-छात्राएं उपस्थित मौजूद रहे। संबोधन में भदौरिया ने बताया कि सभी जीव जंतुओं का जीवन एक दूसरे पर निर्भर है। इसलिए उनका संरक्षण व संवर्धन करना मनुष्य की नैतिक जिम्मेदारी है। उन्होंने बताया कि प्रकृति में जैव विविधता नष्ट होने से मनुष्य के सामने ग्लोबल वार्मिंग, पर्यावरण का नष्ट होना आदि अनेक खतरे उत्पन्न हो रहे हैं। जैव विविधता के सरंक्षण से इन खतरों से बचा जा सकता है।
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प्रकृति में जीव-जंतुओं का संतुलन बनाए रखना आवश्यक
ठीक इसी तरह प्रकृति में जीव-जंतुओं व वनस्पति का संतुलन बना रहने से वह मनुष्य के लिए न केवल जीवन दायनी बन जाती है, बल्कि उनकी आर्थिक उन्नति में भी सहायक है। ... इसलिए उनका संरक्षण व संवर्धन करना मनुष्य की नैतिक जिम्मेदारी है।
यह बात शनिवार को न्यू हाउसिंग बोर्ड स्थित एक सभागार में आयोजित जैव विविधता संगोष्ठी में सामाजिक कार्यकर्ता देवेंद्र सिंह भदौरिया कह रहे थे। कार्यक्रम का आयोजन धरती संस्था द्वारा कराया गया। इस संगोष्ठी में एक सैंकड़ा से अधिक ग्रामीण एवं 150 छात्र-छात्राएं उपस्थित मौजूद रहे। संबोधन में भदौरिया ने बताया कि सभी जीव जंतुओं का जीवन एक दूसरे पर निर्भर है। इसलिए उनका संरक्षण व संवर्धन करना मनुष्य की नैतिक जिम्मेदारी है। उन्होंने बताया कि प्रकृति में जैव विविधता नष्ट होने से मनुष्य के सामने ग्लोबल वार्मिंग, पर्यावरण का नष्ट होना आदि अनेक खतरे उत्पन्न हो रहे हैं। जैव विविधता के सरंक्षण से इन खतरों से बचा जा सकता है।