प्रकृति में सामंजस्य बनाए रखने में जैवविविधता की भूमिका की व्याख्या कीजिए ।
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Answer: Answer with Explanation:
(i) प्रकृति को बनाए रखने में जैव-विविधता की भूमिका का वर्णन निम्न प्रकार से है :
जैव विविधता का महत्व :
जैव विविधता ने कई मायनों में मानव संस्कृति के विकास में योगदान दिया है और बदले में, मानव समुदायों ने भी एक प्रमुख भूमिका निभाई है । प्रकृति की विविधता को आकार देने में भूमिका ,आनुवंशिक, प्रजातियाँ और पारिस्थितिक स्तर पर।
जैव विविधता निम्नलिखित भूमिकाएँ निभाती है:
पारिस्थितिक, आर्थिक और वैज्ञानिक।
जैव विविधता की परिस्थितिकीय भूमिका :
कई प्रकार की प्रजातियां एक पारिस्थितिकी तंत्र में कुछ न कुछ कार्य करती हैं। एक पारिस्थितिकी तंत्र में कुछ भी बिना कारण विकसित नहीं होता है और न ही निर्वाह कर सकता है। इसका मतलब है, हर जीव, अपनी जरूरतों को पूरा करने के अलावा भी अन्य जीवों को पनपने में भी योगदान देता है।
जीव व प्रजातियां ऊर्जा ग्रहण कर उसका भंडारण करती हैं।
कार्बनिक पदार्थों का उत्पादन एवं विघटन करती है।
पूरे पारिस्थितिकी तंत्र में जल व पोषक तत्व के चक्र को बनाए रखने में मदद होती हैं।
वायुमंडल गैस को स्थिर करती हैं।
जलवायु को विनियमित करने में मदद करती हैं
जैव विविधता की आर्थिक भूमिका :
सभी मनुष्यों के लिए, जैव विविधता उनके दैनिक जीवन में एक महत्वपूर्ण संसाधन है। जैव विविधता का एक महत्वपूर्ण हिस्सा 'फसल विविधता' है, जिसे कृषि-जैव विविधता भी कहा जाता है। जैव विविधता को खाद्य, दवा और सौंदर्य प्रसाधन के निर्माण के लिए संसाधनों के भंडार के रूप में देखा जाता है।
जैव विविधता की वैज्ञानिक भूमिका ;
जैव विविधता महत्वपूर्ण है क्योंकि प्रत्येक प्रजाति हमें कुछ संकेत दे सकती है कि जीवन कैसे विकसित हुआ और भविष्य में कैसे विकसित होता रहेगा। जैव विविधता भी यह समझने में मदद करता है कि जीवन कैसे काम करता है और पारिस्थितिक तंत्र को बनाए रखने में प्रत्येक प्रजाति की क्या भूमिका होती है। यह तथ्य हम सभी को यह समझना चाहिए कि हम जीवित रहें और अन्य प्रजातियों को भी अपना जीवन जीने दें।
(ii) जैव-विविधता के ह्रास के लिए उत्तरदायी प्रमुख कारकों का वर्णन निम्न प्रकार से है :
प्राकृतिक आपदाएं :
भूकंप, बाढ़, ज्वालामुखी विस्फोट, जंगल की आग, सूखा इत्यादि जैसी प्राकृतिक आपदाएं पृथ्वी के वनस्पतियों और जीवों को नुकसान पहुंचाती हैं, जिससे संबंधित प्रभावित क्षेत्रों की जैव विविधता में परिवर्तन होता है।
कीटनाशक :
कीटनाशक और अन्य प्रदूषक जैसे हाइड्रोकार्बन और विषाक्त भारी धातुएं कमजोर और संवेदनशील प्रजातियों को खत्म कर देती हैं।
विदेशज प्रजातियां :
प्रजातियां जो स्थानीय निवास के प्राकृतिक निवासी नहीं हैं, लेकिन तंत्र में स्थापित की जाती हैं, उन्हें विदेशज प्रजाति कहा जाता है। ऐसे कई उदाहरण हैं जब विदेशी प्रजातियों के आने के कारण पारिस्थितिकी तंत्र के प्राकृतिक जैव समुदाय को व्यापक क्षति हुई।
अवैध शिकार :
पिछले कुछ दशकों के दौरान, बाघ, हाथी, गैंडा, मगरमच्छ, मिंक और पक्षियों जैसे कुछ जानवरों को उनके सींग, सूंड,, खाल आदि के लिए शिकारियों द्वारा निर्दयता से शिकार किया गया था, जिसके परिणामस्वरूप कुछ प्रकार के जीवों की प्रजातियां लुप्त होने की स्थिति में आ गई है।
इसे रोकने के उपाय निम्न प्रकार से है :
(i) लुप्तप्राय प्रजातियों को संरक्षित करने के प्रयास किए जाने चाहिए।
(ii) विलुप्ति की रोकथाम के लिए उचित योजना और प्रबंधन की आवश्यकता है।
(iii) विभिन्न प्रकार की खाद्य फसलों, वनों के पौधों, लकड़ी के पेड़ों, पशुओं, जानवरों और उनके वन्य प्रजातियों को संरक्षित किया जाना चाहिए।
(iv) प्रत्येक देश को वन्य प्रजातियों के आवासों की पहचान करनी चाहिए और उनकी सुरक्षा सुनिश्चित करनी चाहिए।
(v) ऐसी जगा जहाँ प्रजातियाँ अपने बच्चों को पालती हैं, प्रजनन करती हैं, आराम करती हैं और उन्हें सुरक्षित रखना चाहिए।
(vi) वन्य पौधों और जानवरों का अंतर्राष्ट्रीय व्यापार नियमों के अनुसार हो।
आशा है कि यह उत्तर आपकी अवश्य मदद करेगा।।।।