Hindi, asked by vihaansabharwal29, 10 months ago

प्रकृति ने स्वयं को कैसे संभाला इस विषय पर कविता​

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Answered by za6715
6

Answer:

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कहो, तुम रूपसि कौन?

व्योम से उतर रही चुपचाप

छिपी निज छाया-छबि में आप,

सुनहला फैला केश-कलाप,

मधुर, मंथर, मृदु, मौन!

मूँद अधरों में मधुपालाप,

पलक में निमिष, पदों में चाप,

भाव-संकुल, बंकिम, भ्रू-चाप,

मौन, केवल तुम मौन!

ग्रीव तिर्यक, चम्पक-द्युति गात,

नयन मुकुलित, नत मुख-जलजात,

देह छबि-छाया में दिन-रात,

कहाँ रहती तुम कौन?

अनिल पुलकित स्वर्णांचल लोल,

मधुर नूपुर-ध्वनि खग-कुल-रोल,

सीप-से जलदों के पर खोल,

उड़ रही नभ में मौन!

लाज से अरुण-अरुण सुकपोल,

मदिर अधरों की सुरा अमोल,--

बने पावस-घन स्वर्ण-हिंदोल,

कहो, एकाकिनि, कौन?

मधुर, मंथर तुम मौन?

Answered by ganeshpp70
3

Answer:

वो गुनगुनाती-सी हवाएं, दिल को बहलाती जाएं 

करे है मन कि अब हम यहीं रुक जाएं

 

चारों ओर फैली हरियाली मन ललचाए  

शमा में फैली ठंडक मन को भा जाए 

ऊंचे-ऊंचे पर्वत के शिखर बादलों संग मिलकर गीत गाए

कल-कल करते बहते झरने, अनंत शांति का संदेश सुनाएं 

प्रकृति की गोद से मानो, भीनी-भीनी खुशबु आए 

वन्य जीवन के प्राणी देख, दिल एक सवाल कर जाए 

 

जाती इनकी बर्बरता की, फिर भी यह कितनी शि‍द्दत से 

कैसे अपना धर्म निभाए, 

पेट भरा हो तब बब्बर शेर भी, 

हिरन का शिकार किए बिना ही चला जाए

 

इससे मानव को यह संदेश है मिलता 

न बन आतंकी न बन अत्याचारी  

 

तुझे दी है ईश्वर ने समझ की दौलत 

तो चलता चल अपना धर्म निभाए ...

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