प्रकृति और हम हिंदी अनुच्छेद
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प्रकृति और हम हिंदी अनुच्छेद
प्रकृति ने हमें इतना कुछ दिया है कि हम सोच भी नहीं सकते। इस धरती पर जीवन प्रकृति के कारण ही सम्भव है। ब्रह्माण्ड में और भी कई ग्रह हैं लेकिन इस प्रकृति के बिना वहाँ जीवन सम्भव नहीं है। इस प्रकार प्रकृति हमारे जीवन का आधार है। धरती पर हर स्थान पर प्रकृति एक जैसी नहीं है। स्थान के अनुसार प्रकृति अपना रूप-रंग बदल लेती है और उस स्थान के अनुसार हमें संसाधन उपलब्ध कराती है साथ ही हमारे मन, हमारी आँखों को सुकून प्रदान करती है।हमारे चारों और हम जो भी प्राकृतिक वस्तुएं देखते हैं वह प्रकृति ही है। प्रकृति से हमें वह सब मिलता है जो इंसान के जीवन के लिए अतिआवश्यक है। जैसे साँस लेने के लिए वायु (ऑक्सीजन), पीने के लिए पानी और पेट भरने के लिए खाद्य सामग्री। लेकिन इंसान अपनी और अधिक चाह के लिए प्रकृति का दोहन करता जा रहा है ओर इस धरती को प्रकृति के सौंदर्य से वंचित कर रहा है। समय हमें चेता रहा है कि यदि हमने अभी इस विषय पर ठोस कदम न उठाये तो वह दिन दूर नहीं जब इस धरती पर जीवन संभव न हो पायेगा।प्रकृति हमें इतना कुछ देती है तो हमारा भी फर्ज बनता है कि हम इसके महत्व को जानते हुए इसका सम्मान करें और इसे अपने स्वार्थ के लिए उजाड़ें नहीं। जिससे मनुष्य की संतानें भी इसकी सुंदरता का आनन्द ले सके और इसका लाभ उठा सकें अन्यथा एक दिन वह होगा जब इस प्रकृति के सौंदर्य को लोग कम्प्यूटर पर ही देख और महसूस कर पायेंगे।एक छोटे से शब्द ”प्रकृति“ में कितना कुछ समाता है कोई सोच भी नहीं सकता। प्रकृति के अन्दर वायु, पानी, मिट्टी, पेड़-पौधे, पशु-पक्षी, नदियाँ, सरोवर, झरने, समुद्र, जंगल, पहाड़, खनिज आदि और न जाने कितने प्राकृतिक संसाधन आते हैं। इन सभी से हमें साँस लेने के लिए शुद्ध हवा, पीने के लिए पानी, भोजन आदि जो जीवन के लिए नितान्त आवश्यक हैं उपलब्ध होते हैं। प्रकृति से हमें जीवन जीने की उमंग मिलती है। बसंत देख कर दिल खुश होता है, सावन में रिमझिम बरसात मन को मोह लेती है, इंद्रधनुष हमारे अंतरंग में रंगीन सपने सजाता है। प्रकृति हमें शारीरिक सुख-सुविधा के साथ-साथ मानसिक सुख भी देती है पर हमारे पास प्रकृति को देने के लिए कोई वस्तु नहीं है। यदि कुछ है तो वह सिर्फ इतना कि हम इसका संरक्षण कर सकें।
सूर्य की पहली किरण से लेकर चाँद की चाँदनी तक, खुले मैदानों, बुग्यालों से लेकर जंगल और पहाड़ों तक, नदी के कल-कल मधुर संगीत से लेकर समुद्र में उठती लहरों, पेड़ पर बैठी चिड़िया की चहचहाहट जो भी हमारे आसपास उपलब्ध प्राकृतिक संसाधन हैं हमें सबका अनुभव करना चाहिये और आनन्द उठाना चाहिये। क्योंकि जब तक हमें इसके महत्व का बोध नहीं होगा और जब तक हम इसके सौंदर्य की सराहना करना नहीं सीखेंगे तब तक हमारे लिए यह महत्व का विषय नहीं हो सकती। किसी चित्रकार, कवि, लेखक और कलाकारों के भाव तभी जागृत होते हैं जब वह प्रकृति की गोद में शांत वातातरण में कल्पना करता है, तभी वह उसे कागज पर उतारता है। इसके बिना तो जीवन में रंग भी नहीं है। जब इंसान मशीनी जीवन जीते-जीते ऊब जाता है तो प्रकृति की गोद में जाकर सुकून की साँस लेना चाहता है। आजकल के युग में मनुष्य प्राकृतिक वस्तुओं की ओर ज्यादा आकर्षित हो रहा है और वस्तुएं खरीदते समय भी वह प्राकृतिक वस्तुओं या प्राकृतिक तव्वों से बनी वस्तुओं को ही महत्व देता है। जब हम प्राकृतिक उत्पादों को इतना महत्व देते हैं तो प्रकृति को क्यों नहीं ? आखिर ये सब वस्तुएं तभी तक उपलब्ध हैं जब तक यह प्रकृति है।
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हम प्रकृति से चाहते तो बहुत कुछ हैं लेकिन अपनी कीमत पर। जिस रफ्तार से हम पेड़ काट कर वनों को कम करके उत्पादों का निर्माण कर रहे हैं उतनी रफ्तार से पौधों का रोपण नहीं हो रहा है। हमें पीने के लिए स्वच्छ जल चाहिये लेकिन कल-कारखानों का सारा जहरीला पानी हम नदियों में ही बहाते हैं। खाने के लिए हमें रसायन मुक्त फल-फूल और भोजन चाहिये लेकिन रसायनों का प्रयोग बन्द नहीं करते। यदि ऐसा ही रहा तो दिखावे मात्र प्रयास करने से प्रकृति पर कुछ प्रभाव नहीं पड़ेगा। जैसा व्यवहार हम प्रकृति के साथ करेंगे वैसा ही वह हमारे साथ करेगी। बेमौसमी बरसात, बाढ़, सूखा, मौसम परिवर्तन, भू-स्खलन, सूखते जंगल, बंजर भूमि इन सब परिणामों के लिए हमें तैयार रहना चाहये। यदि ऐसा ही रहा तो दिन प्रति दिन यह प्रकृति धीरे-धीरे लुप्त होती जायेगी इसलिए हमें प्रत्यन करना चाहिये कि हम प्रकृति का संतुलन बिगाड़े बगैर इसका लाभ उठा सकें। अन्यथा इसे स्वच्छ और स्वस्थ रखे बिना स्वच्छ और स्वस्थ जीवन की आशा करना बेकार है।
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प्रकृति और हम.....
प्रकृति एक प्राकृतिक पर्यावरण है जो हमारे आसपास है, हमारा ध्यान देती है और हर पल हमारा पालन-पोषण करती है। ये हमारे चारों तरफ एक सुरक्षात्मक कवच प्रदान करती है जो हमें नुकसान से बचाती है। हवा, पानी, जमीन, आग, आकाश आदि जैसी प्रकृति के बिना हमलोग इस काबिल नहीं है कि धरती पर रह सके। प्रकृति हमारे आस-पास कई रुपों में है जैसे पेड़, जंगल, जमीन, हवा, नदी, बारिश, तालाब, मौसम, वातावरण, पहाड़, पठार, रेगिस्तान आदि। कुदरत का हर स्वरुप बहुत शक्तिशाली है जो हमारा पालन पोषण करने के साथ ही नाश करने की क्षमता भी रखता है।
आज के दिनों में सभी के पास प्रकृति का आनन्द उठाने का कम समय है। बढ़ती भीड़ में हम प्रकृति का सुख लेना और अपने को स्वस्थ रखना भूल गये है। हम शरीर को फिट रखने के लिये तकनीक का प्रयोग करने लगे है। जबकि ये बिल्कुल सत्य है कि प्रकृति हमारा ध्यान रख सकती है और हमेशा के लिये फिट रख सकती है। बहुत सारे लेखक अपने लेखन में प्रकृति के फायदे और उसकी सुंदरता का गुणगान कर चुके है। प्रकृति के पास ये क्षमता है कि वो हमारे दिमाग को चिंता मुक्त रखे और बीमारीयों से बचाए। मानव जाति के जीवन में तकनीकी उन्नत्ति के कारण हमारी प्रकृति का लगातार ह्रास हो रहा है जिसे संतुलित और उसके प्राकृतिक संपत्ति को संरक्षित रखने के लिये उच्च स्तर की जागरुकता की जरुरत है।
ईश्वर ने सब कुछ बहुत सुंदरता से देखने के लिये बनाया है जिससे हमारा आँखे कभी नहीं थक सकती। लेकिन हम भूल जाते है कि मानव जाति और प्रकृति के बीच के रिश्तों को लेकर हमारी भी कुछ जिम्मेदारी है। सूर्योदय की सुबह के साथ ये कितना सुंदर दृश्य दिखाई देता है, जब चिड़ियों के गाने, नदी, तालाब की आवाज हवा और एक लंबे दिन के दबाव के बाद बगीचे में शाम में दोस्तों के साथ खुशनुमा पल हो। लेकिन हम अपने पारिवारिक जिम्मेदारियों के चलते प्रकृति की खूबसूरती का आनन्द लेना भूल चुके है।
कई बार हमारी छुट्टीयों में हम अपना सारा दिन टीवी, न्यूजपेपर, कम्प्यूटर खेलों में खराब कर देते है लेकिन हम भूल जाते है कि दरवाजे के बाहर प्रकृति के गोद में भी बहुत कुछ रोचक है हमारे लिये। बिना जरुरत के हम घर के सारे लाइटों को जलाकर रखते है। हम बेमतलब बिजली का इस्तेमाल करते है जो ग्लोबल वार्मिंग को बढ़ावा देता है। हमारी दूसरी गतिविधियाँ जैसे पेड़ों और जंगलों की कटाई से CO2 गैस की मात्रा में वृद्धि होती है और ग्लोबल वार्मिंग का कारण बनती है।
अगर हमें हमेशा खुश और स्वस्थ रहना है तो हमें स्वार्थी और गलत कार्यों को रोकने के साथ-साथ अपने ग्रह को बचाना होगा और इस सुंदर प्रकृति को अपने लिये बेहतर करना होगा। पारिस्थितिकीय तंत्र को संतुलित करने के लिये हमें पेङों और जंगलो की कटाई रोकनी होगी, ऊर्जा और जल का संरक्षण करना होगा आदि। अंत में प्रकृति के असली उपभोक्ता हम है तो हमें ही इसका ध्यान रखना चाहिये।