प्रकृति रही दुर्जेय पराजित हम सब थे भूले मद में,
भोले थे, हाँ तिरते केवल सब विलासिता के नद में।
वे सब डूबे, डूबा उनका विभव, बन गया पारावार
उमड़ रहा था देव सुखों पर दुख जलधि का नाद अपार"पंक्तियों का सरल अर्थ 25 से 30 शब्दों में लिखिए
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ehdhjsvsmaksgejd hjshslkhfthkoaoa hajebty7cyvebauf6 sguak2v4csbis hshA I nsbvshandn
प्रस्तुत कविता खंड श्री जयशंकर प्रसाद की रचना कामायनी के काव्य खंड से लिया गया है। प्रस्तुत पंक्तियों में कवि यह कहना चाह रहे है कि हमारी प्रकृति को हम तब भूल गए अब वह पराजित अथवा दुर्जेय रही थी। हम सब अपने कर्मों की विलासिता में मगन रहे और प्रकृति पर किसीने ध्यान नहीं दिया। इन सुखों ने हमें ऐसा डुबोया कि हमें प्रकृति का संकट दिखाई ही न दिया जिससे देवताओं के सुख के सागर में दुखों के बदल उमड़ने लगे।
जलाधि के इस नाद से यह दुख हमें भी विलीन करेगा जिसके कारण स्वरूप हमें प्रकृति की संरचना की रक्षा करनी होगी।
उपर्युक्त पंक्तियों में शांत रस की अनुभूति हो रही है।
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