प्रकृति से जुड़े रहना क्यों आवश्यक है? कैसे?
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अपने पर्यावरण की अनदेखी करना एवं विकास के लिए अंधी दौड़ में आगे निकलने की चाहत अब चीन के लिए भारी पड़ रही है। पूरी दुनिया में अपने सस्ते सामान बेचने के लिए चीन में पर्यावरण मानकों की घोर अनदेखी की गई। जिसका दुष्प्रभाव दिखना शुरू हो चुका है।
प्रकृति के सफाईकर्मी के रूप में देखे जाने वाले गिद्ध, चील एवं कौवों की प्रजाति संकटग्रस्त हो चुकी हैं। जिससे जानवरों के लाशों के निस्तारण की समस्या में भी वृद्धि हुई है। फूलों का रस चूसने वाले कीट पतंगें नहीं होंगे तो परागण में समस्या होगी जिससे प्राकृतिक रूप से जंगलों में पेड़ नहीं पनपेंगे। वृक्षों की कमी के कारण पहाड़ों में मिट्टी खिसकने की समस्या में भारी वृद्धि होगी एवं जरा-सी बरसात भी व्यापक विनाश का कारण बन जाएगी। कीटनाशकों एवं उर्वरकों के प्रयोग से भूमि की उर्वरा शक्ति में व्यापक कमी होगी।
अपने पर्यावरण की अनदेखी करना एवं विकास के लिए अंधी दौड़ में आगे निकलने की चाहत अब चीन के लिए भारी पड़ रही है। पूरी दुनिया में अपने सस्ते सामान बेचने के लिए चीन में पर्यावरण मानकों की घोर अनदेखी की गई। जिसका दुष्प्रभाव दिखना शुरू हो चुका है।
अपने पर्यावरण की अनदेखी करना एवं विकास के लिए अंधी दौड़ में आगे निकलने की चाहत अब चीन के लिए भारी पड़ रही है। पूरी दुनिया में अपने सस्ते सामान बेचने के लिए चीन में पर्यावरण मानकों की घोर अनदेखी की गई। जिसका दुष्प्रभाव दिखना शुरू हो चुका है।