"प्रकृति से कोरोना पर विजय"
पर एक निबंध लिखिए।
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प्रकृति से कोरोना पर विजय पर एक निबंध।
आज कोरोनावायरस महामारी का प्रकोप पूरे विश्व में फैला हुआ है। संसार का कोई ऐसा देश नहीं है जो इस महामारी से त्रस्त ना हो। ऐसा संकट विश्व में कभी नहीं आया कि संसार के सभी देश त्राहि-त्राहि कर उठे हों।
मनुष्य की जिजीविषा के आगे बड़े से बड़े संकट हार गए हैं और यह बड़ा संकट भी शीघ्र ही टल जाएगा और मनुष्य इस बीमारी पर अपनी विजय प्राप्त कर लेगा। इस बात में कोई संशय नहीं। पर हमें इस बीमारी से कुछ सबक सीखने को मिला है। हम अगर उन सबको अपने जीवन में ढाल लें तो हो सकता है, भविष्य में हमें कोई ऐसी महामारी या ऐसे किसी संकट का सामना ना करना पड़े।
इस महामारी के कारण विश्व के अनेक देशों में लॉकडाउन करना पड़ा। इससे मानवीय गतिविधियां पूरी तरह ठप पड़ गईं। कारखाने और अन्य औद्योगिक इकाइयां बंद हो गईं। व्यवसायिक गतिविधियां बंद हो गईं। हालांकि इसका जो आर्थिक नुकसान हुआ है वह एक अलग विषय है, लेकिन अगर हम प्रकृति के नजरिए से देखें तो इसका हमें फायदा ही हुआ है। आज हमने देखा है कि हमारे चारों तरफ का वातावरण इतना स्वच्छ हो गया है। प्रदूषण के स्तर में गिरावट आई है। नदियां स्वच्छ हो गई हैं, हवा स्वच्छ हो गई है। आसमान में पंछी चहचहाने लगे हैं, पक्षियों की चहचहाहट चारों तरफ सुनाई देने लगी है। प्रकृति अपने मूल स्वरूप में लौटने लगी है, जिससे हमें यह सबक मिलता है कि मानव को कुच करने की जरूरत नहीं बस वह केवल अपनी विकास की अंधी दौड़ पर थोड़ा लगाम लगाए और प्रकृति से छेड़छाड़ ना करें। प्रकृति स्वयं ही अपने आप को ठीक कर लेगी।
जिन नदियों को साफ करने के लिए करोड़ों रुपये लगाए गए तो भी नदियां साफ नहीं हुईं। वह नदियां लॉकडाउन के कारण स्वतः स्वच्छ व निर्मल हो गयी हैं। ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि लॉक डाउन के कारण मानव की वह गतिविधियां बंद हो गई जो वह नदियों को प्रदूषित करने के लिए करता था। औद्योगिक इकाइयों का कचरा आदि और मानव द्वारा किए जाने वाले कार्यों द्वारा नदियों को गंदा करने का कृत्य लगभग बंद हो गया था। इस कारण नदियां स्वतः ही स्वच्छ एवं निर्मल होने लगीं प्रदूषण के स्तर में भी सब जगह बेहद कमी आ गई है। इसका कारण भी वाहन आदि ज्यादा ना चलना है. क्योंकि अत्याधिक वाहनों से प्रदूषण निरंतर बढ़ता जा रहा था। लॉक डाउन के कारण वाहनों की संख्या में कमी आई और प्रदूषण कम हुआ।
इन सब बातों से हमें यह सबक मिलता है कि हम अपनी तथाकथित विकास से जुड़ी गतिविधियों के कारण ही प्रकृति को प्रदूषित कर रहे हैं, पर्यावरण को नष्ट कर रहे हैं। यदि हम अपनी तथाकथित विकास से संबंधित गतिविधियों को थोड़ा नियंत्रित करें। प्राकृतिक जीवन जीयें और प्राकृतिक जीवन की ओर लौटें, तो प्रकृति स्वता ही स्वच्छ एवं निर्मल हो जाएगी और भविष्य में ऐसी किसी महामारी के संकट का सामना ना करना पडेगा।
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