प्रकृति-सुख की तुलना किसी अन्य सुख से क्यों नहीं की जा सकती?
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लेखक ने संसार में अखाड़े की मिट्टी में सनने के सुख को दुर्लभ माना है। तेल और मट्ठे से सिझाई हुई जिस अखाड़े की मिट्टी को देवताओं पर चढ़ाया जाता है, उसको अपनी देह पर लगाना संसार के सबसे दुर्लभ सुख के समान है। मिट्टी की आभा का नाम 'धूल' है और मिट्टी के रंग-रूप की पहचान उसकी धूल से ही होती है।
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