प्रकृति से खिलवाड़ के कारण आज जगह-जगह प्रकृति रुठती दिखाई देती है। कैसे? इस विषय पर अपने विचार प्रकट कीजिए।
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मनुष्य जब से धरती पर आया है, तब से वह उसके चेहरे को बदलता रहा है। खेतीबाड़ी के आने से पहले ही उसने जंगल को बदलना शुरू कर दिया था और जानवरों को गायब करने लगा था, लेकिन पिछले 150 साल में तो उसने धरती को बड़ी तेजी से बदला है। तेजी से बढ़ती आबादी और तकनीक ने उसकी पूरी प्रकृति को ही तोड़-मरोड़ दिया है। दुनिया तेजी से शहरीकरण की ओर बढ़ रही है। अमेरिका जैसे विकसित देश में तो 75 प्रतिशत लोग शहरों में रहने लगे हैं, लेकिन अपने एशिया के हाल भी खासा बदल रहे हैं। मसलन, 1960 में महज 20 प्रतिशत लोग ही शहरों में रहते थे। 1990 में यह 33 प्रतिशत हो गया। 2020 का अनुमान है कि 50 प्रतिशत एशिया शहरी हो जाएगा। यह कहने की जरूरत नहीं कि शहर हमारी प्रकृति के साथ कहीं ज्यादा खिलवाड़ करते हैं। इसीलिए हर प्राकृतिक संसाधन को लेकर मारामारी शुरू हो गई है। अगर अभी से हम नहीं चेते, तो ये शहरीकरण हमें बर्बाद कर देगा।
जकार्ता पोस्ट
म्यांमार के चुनाव
म्यांमार के जनरलों को पिछले चुनावों का नतीजा पसंद नहीं आया था। आता भी कैसे? आखिरकार आंग सान सू ची की पार्टी चुनाव जीत गई थी। अब फिर वहां चुनाव का दौर है। बीस साल बाद यह कवायद हो रही है। यह तय है कि ये चुनाव भी पूरी तरह ‘मैनेज’ होंगे। इन चुनावों को ये फौजी अनुशासित लोकतंत्र बता रहे हैं। इसी अनुशासित लोकतंत्र में सू ची की पार्टी ने शामिल होने से इनकार कर दिया है और बाहरी दुनिया उस चुनाव को देख नहीं सकती। उसी से तय हो जाता है कि ये चुनाव क्या हैं? फिर भी म्यांमार में लोकतंत्र एक कदम धीरे से आगे बढ़ा है।
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happy friendship day all and sundry
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