“प्रकृत शक्ति तुमने यंत्रों से सबकी छीनी,
शोषण कर जीवनी बना दी जर्जर झीनी। ”
इन पंक्तियों के माध्यम से मनुष्य के क्रियाकलापों से प्राकृतिक विनाश को
स्पष्ट करते हुए अपने विचार लिखे। PLEASE HELP. I WILL MARK AS BRAINLIEST (IF YOU NOT GIVE A SENSELESS/USELESS ANSWER) . I WILL ALSO FOLLOW YOU BUT FIRST PLEASE ANSWER.
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“प्रकृत शक्ति तुमने यंत्रों से सबकी छीनी,
शोषण कर जीवनी बना दी जर्जर झीनी।”
जयशंकर प्रसाद ने अपनी रचना कामायानी में इन पंक्तियों के माध्यम से मानव द्वारा प्रकृति के प्रति किए जा रहे खिलवाड़ का वर्णन किया है और यह सिद्ध करने की कोशिश की है कि समस्त प्रकृति प्रदत्त शक्तियों का मानव अपनी भौतिकवादी महत्वाकांक्षाओं के चलते शोषण करता रहता है।
यह प्रकृति की शक्तियां हैं जिन्हें मानव ने अपनी महत्वाकांक्षाओं से बांध लिया है। मानव ने जंगलों को अंधाधुंध काटकर हरियाली को जगह-जगह नष्ट किया है। नदियों पर बाँध बनाकर उनकी अविरल धारा को रोकने का दुस्साहस किया है। मानव चारों तरफ कंक्रीट के जंगल बिछाता जा रहा है। उसने अपने कल-कारखानों के माध्यम से प्रकृति की हवा को जहरीला करने में कोई कसर नहीं छोड़ी है। उसके साथ ही उसने अपने कूड़े-करकट के द्वारा नदियों को प्रदूषित किया है। उसने पहाड़ों को काट-काटकर उन्हें हीन किया है, जो पहाड़ अछूते थे, वहां पर चढ़-चढ़कर अपनी गतिविधियों द्वारा गंदगी फैलाई है।
मानव ने अपने जीवन में यंत्रों को इतना अधिक महत्व दिया है कि वह प्राकृतिक जीवन से विमुख हो गया है और उसने यंत्रों के माध्यम से इस प्रकृति के तत्वों का शोषण कर इस प्रकृति को बेहद कमजोर और निष्प्राण बना दिया है।
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