प्रमाण म्हणजे काय ? शब्द प्रमाणावर सविस्तर माहिती लिहा.
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भारतीय दर्शन में प्रमाण उसे कहते हैं जो सत्य ज्ञान करने में सहायता करे। अर्थात् वह बात जिससे किसी दूसरी बात का यथार्थ ज्ञान हो। प्रमाण न्याय का मुख्य विषय है। 'प्रमा' नाम है यथार्थ ज्ञान का। यथार्थ ज्ञान का जो करण हो अर्थात् जिसके द्वारा यथार्थ ज्ञान हो उसे प्रमाण कहते हैं। गौतम ने चार प्रमाण माने हैं- प्रत्यक्ष, अनुमान, उपमान और शब्d
प्रमाण का लक्षण
'यथार्थ अनुभव' को 'प्रमा' कहते हैं। 'स्मृति' तथा 'संशय' आदि को 'प्रमा' नहीं मानते। अतएव अज्ञात तत्त्व के अर्थज्ञान को 'प्रमा' कहा है। इस अनधिगत अर्थ के ज्ञान के उत्पन्न करने वाला करण 'प्रमाण' है। इसी को शास्त्रदीपिका में कहा है--
कारणदोषबाधकज्ञानरहितम् अगृहीतग्राहि ज्ञानं प्रमाणम् ।
अर्थात जिस ज्ञान में अज्ञात वस्तु का अनुभव हो, अन्य ज्ञान से बाधित न हो एवं दोष रहित हो, वही 'प्रमाण' है।
प्रमाण के भेद
इंद्रियों के साथ संबंध होने से किसी वस्तु का जो ज्ञान होता है वह प्रत्यक्ष है। लिंग (लक्षण) और लिंगी दोनों के प्रत्यक्ष ज्ञान से उत्पन्न ज्ञान को अनुमान कहते हैं। किसी जानी हुई वस्तु के सादृश्य द्वारा दूसरी वस्तु का ज्ञान जिस प्रमाण से होता है वह उपमान कहलाता है। जैसे, गाय के सदृश ही नील गाय होती है। आप्त या विश्वासपात्र पुरुष की बात को शब्द प्रमाण कहते हैं।
इन चार प्रमाणों के अतिरिक्त मीमांसक, वेदांती और पौराणिक चार प्रकार के और प्रमाण मानते हैं—ऐतिह्य, अर्थापत्ति, संभव और अनुपलब्धि या अभाव। जो बात केवल परंपरा से प्रसिद्ध चली आती है वह जिस प्रमाण से मानी जाती है उसको ऐतिह्य प्रमाण कहते हैं। जिस बात से बिना किसी देखी या सुनी बात के अर्थ में आपत्ति आती हो उसके लिये अर्थापत्ति प्रमाण हैं। जैसे, मोटा देवदत्त दिन को नहीं खाता, यह जानकर यह मानना पड़ता है कि देवदत्त रात को खाता है क्योंकि बिना खाए कोई मोटा हो नहीं सकता। व्यापक के भीतर व्याप्य—अंगी के भीतर अंग—का होना जिस प्रमाण से सिद्ध होता है उसे संभव प्रमाण कहते हैं। जैसे, सेर के भीतर छटाँक का होना। किसी वस्तु का न होना जिससे सिद्ध होता है वह अभाव प्रमाण है। जैसे चूहे निकलकर बैठे हुए हैं इससे बिल्ली यहाँ नहीं है। पर नैयायिक इन चारों को अलग प्रमाण नहीं मानते, अपने चार प्रमाणों के अंतर्गत मानते हैं।
भारतीय दर्शन के विभिन्न सम्प्रदायों में प्रमाणों की संख्या भिन्न-भिन्न है। किन-किन दर्शनों में कौन-कौन प्रमाण गृहीत हुए हैं यह नीचे दिया जाता है-
चार्वाक - केवल प्रत्यक्ष प्रमाण
बौद्ध - प्रत्यक्ष और अनुमान
सांख्य - प्रत्यक्ष, अनुमान और आगम (शाब्द)
पातंजल - प्रत्यक्ष, अनुमान और आगम (शाब्द)
वैशेषिक - प्रत्यक्ष और अनुमान
रामानुज पूर्णप्रज्ञ - प्रत्यक्ष, अनुमान और आगम (शाब्द)
भाट्टमत में 'प्रमाण' के छः भेद हैं-- प्रत्यक्ष, अनुमान, उपमान, शब्द, अर्थातपत्ति तथा अनुपलब्धि या अभाव।
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