प्रणाम का भारतीय संस्कृति में बहुत महत्व है। यह अपने से बड़ों, श्रद्धेय तथा आदरणीय जनों के प्रति
आत्मीयता का प्रतीक है। माता -पिता के अतिरिक्त समाज के सभी अतिथियों , साधु - संतों को अपनी परंपरा के अनुसार प्रणाम करना मानव धर्म है। वस्तुत: प्रणाम जीवन रूपी क्षेत्र में आशीर्वाद का अन्न उगाने का बीज मंत्र है। प्रणाम के संबंध में मनु की मान्यता है कि वृद्धजनों व माता - पिता को जो नित्य सेवा प्रणाम से प्रसन्न रखते है।उसके आयु, विद्या ,यश और बल चारों की वृद्धि होती है। प्रणाम के बल पर ही बालक मार्कंडेय ने सप्त ऋषियों से चिरंजीवी होने का वरदान प्राप्त किया था। प्रणाम की महत्ता निरूपित करते हुए संत तुलसीदास कहते हैं- "वह मानव शरीर व्यर्थ है जो सज्जनों एवं गुरुजनों के सम्मुख नहीं झुकता।" भारतीय संस्कृति में प्रणाम का महत्व सर्वोपरि रहा है। महाभारत में भी युद्ध भूमि में जाने से पूर्व युधिष्ठिर ने भी प्रणाम के महत्व को
जानते हुए अपने पितामह भीष्म , गुरु द्रोणाचार्य,कुलगुरु कृपाचार्य एवं महाराज शल्य को प्रणाम करके विजयी होने का वरदान प्राप्त किया था और प्रणाम से प्राप्त आशीर्वाद से विजयी भी।
प्रश्नन
(क) भारतीय संस्कृति में प्रणाम का क्या महत्व है?
(ख) प्रणाम के संबंध में मनु की क्या मान्यता है?
(ग) प्रणाम के बल पर युधिष्ठिर ने किससे और क्या प्राप्त किया?
(घ) तुलसीदास जी के कथन से मानव को क्या संदेश मिला?
(ड) प्रणाम किसका बीज मंत्र है?
(च) प्रस्तत गद्यांश का शीर्षक लिखिए।
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प्रणाम जीवन रूपी क्षेत्र में आशीर्वाद का अन्न उगाने का बीज मंत्र है।
प्रणाम के संबंध में मनु की मान्यता है कि वृद्धजनों व माता - पिता को जो नित्य सेवा प्रणाम से प्रसन्न रखते है।उसके आयु, विद्या ,यश और बल चारों की वृद्धि होती है।
युधिष्ठिर ने भी प्रणाम के बल पर अपने पितामह भीष्म , गुरु द्रोणाचार्य,कुलगुरु कृपाचार्य एवं महाराज शल्य को प्रणाम करके विजयी होने का वरदान प्राप्त किया था
तुलसीदास कहते हैं- "वह मानव शरीर व्यर्थ है जो सज्जनों एवं गुरुजनों के सम्मुख नहीं झुकता।"
प्रणाम आशीर्वाद का अन्न उगाने का बीज मंत्र है।
अभिवादन का महत्व
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