पारसंचालन
न मनुष्य के श्वसन अंगों को नामांकित चित्र बनाकर उनके कार्यों
का वर्णन
कीजिए।
Answers
मनुष्य के श्वसन तंत्र (Organs of human respiratory system):
नासिका (Nostrils): मनुष्य में नासिका मुखद्धार के ठीक ऊपर स्थित होता है। इसमें दो लगभग गोलाकार बाह्य नासिका छिद्र (External nostrils or Nares) होते हैं जो अन्दर की ओर दो अलग-अलग (दायाँ एवं बायाँ) नासिका वेश्मों (Nasal chambers) में खुलते हैं। दोनों नासिका वेश्म एक ऊँची, लम्बवत, अस्थि की बनी नासा पट्टिका (Nasal septum) के द्वारा एक-दूसरे से अलग होते हैं। नासिका वेश्म का छोटा अग्रभाग जिसमें बाह्य नासिका छिद्र खुलता है, प्रघ्राण या प्रकोष्ठ (vestibule) कहलाता है। इस भाग में सामान्य रोमयुक्त त्वचा (Hairy skin) का स्तर होता है। प्रघ्राण के पीछे नासा वेशम का छोटा ऊपरी भाग घ्राणक्षेत्र (Olfactory region) तथा मध्य और निचला भाग श्वसन क्षेत्र (Respiratory region) कहलाता है। मनुष्य में घ्राण क्षेत्र अत्यन्त छोटा होता है, जिसके कारण मनुष्य में सूंघने की क्षमता कुछ निम्न स्तनधारियों की तुलना में कम होती है। नासिका वेश्म की दीवार टेढ़ी-मेढ़ी, घुमावदार प्लेट की तरह होती है, जिसे काँची (Conchae) कहते हैं। नासिका वेश्मों में महीनम्यूकस मेम्ब्रेन (Mucous Membrane) का स्तर होता है जो म्यूकस (Mueous) का स्राव करते हैं। श्वसन क्षेत्र में स्थित श्वसन एपिथोलियम (Respiratory epithelium) के नीचे महीन रक्त केशिकाओं का जाल फैला रहता है। नासिका वेश्म अन्दर की ओर ग्रसनी (Pharynx) में कण्ठद्वार (Glottis) के समीप खुलता है। ग्रसनी कण्ठद्वार के ठीक नीचे एक छोटी रचना स्वरयंत्र में खुलती है।
स्वरयंत्र (Larynx): श्वसन मार्ग का वह भाग जो ग्रसनी (Pharynx) को श्वासनली से जोड़ता है, कण्ठ या स्वरयंत्र कहलाता है। इसका मुख्य कार्य ध्वनि का उत्पादन करना है। ध्वनि उत्पादन के अतिरिक्त यह खाँसने, निगलने, श्वासोच्छवास तथा श्वसन मार्ग की सुरक्षा करने में सहायक होता है। स्वरयंत्र के प्रवेश द्वार पर एक पतला एवं पत्ती के समान कपाट (valve) होता है, जिसे एपिग्लॉटिस (Epiglottis) कहते हैं। जब कुछ अन्दर निगलना होता है तो एपिग्लॉटिस द्वार बन्द कर लेता है, जिससे भोजन श्वासनली में प्रवेश नहीं कर पाता है। यह क्रिया स्वतः सम्पन्न होती है।
श्वासनली (Trachea): स्वरयंत्र श्वासनली या ट्रेकिया से जुड़ा होता है। दूसरे शब्दों में स्वरयंत्र (Larynx) पीछे की ओर श्वासनली या ट्रेकिया में खुलता है। श्वासनली लगभग 11 cm लम्बी नली है जिसका व्यास 16 mm का होता है। शवासनली की पतली दीवार को मजबूती प्रदान करने के लिए बहुत से उपास्थि के बने अपूर्ण वलय (Incomplete rings) क्रम से इसकी सम्पूर्ण लम्बाई में सजे होते हैं। ये वलय श्वासनली से वायु के बाहर निकलते समय उसे पिचकने से रोकते हैं। श्वासनली नीचे की ओर वक्षगुहा (Thoracic cavity) जहाँ यह विभाजित होकर दी श्वसनियों (Bronchi) में बँट जाती है। श्वसनियों में भी श्वासनली की तरह उपस्थीय वलय (Cartilageous rings) होते हैं। प्रत्येक श्वसनी फेफड़े में प्रवेश कर तुरन्त श्वसनिकाओं (Bronchioles) में विभाजित हो जाती है। नासिका से शवसनिकाओं तक श्वसन तंत्र का सम्पूर्ण आन्तरिक भाग पक्ष्माभिकामय एपिथीलियम (Ciliated epithelium) का बना होता है। फेफड़े के अन्दर प्रत्येक श्वसनिका पुनः पतली शाखाओं में विभाजित हो जाती है जिन्हें वायुकोष्ठिका वाहिनियाँ (Alevolar ducts) कहते हैं। ये वाहिनियाँ अनेक छोटे-छोटे वायुकोष या एल्विओलाई (Airsacs or Alveoli) में खुलती है। मनुष्य के दोनों फेफड़ों में ऐसे करीब 3 × 108 वायुकोष पाए जाते हैं। इस प्रकार मनुष्य के फेफड़ों में श्वसन गैसों के आदान-प्रदान के लिए लगभग 400-800 वर्ग फीट सतह (surface) उपलब्ध होती है।
फेफड़ा (Lungs): मनुष्य के वक्ष गुहा (Thoracic cavity) में एक जोड़ी शंक्वाकार फेफड़े होते हैं। मनुष्य का फेफड़ा स्पंजी (spongy), गुलाबी थैलीनुमा रचना है, जो हृदय के इधर-उधर प्लूरल गुहाओं (Pleural cavity) में स्थित होता है। प्लूरल गुहा के चारों ओर प्लूरल मेम्ब्रेन (Pleural membrane) का पतला आवरण होता है जिसे पैराइटल गुहा (Parietal Pleura) कहते हैं। फेफड़ा और प्लूरा के मध्य म्यूकस जैसा चिकना तरल पदार्थ पाया जाता है जो फेफड़े के फैलने और फिर वास्तविक रूप में लौटने से होने वाले घर्षण को कम करता है। मनुष्य के प्रत्येक फेफड़े में लगभग 300 करोड़ वायुकोष (Airsacs) या एल्विओलाई (Alveoli) होते हैं। दायाँ फेफड़ा थोड़ा लम्बा एवं बायाँ फेफड़ा थोड़ा छोटा होता है। दायाँ फेफड़ा तीन पालियों (Lobes) एवं बायाँ फेफड़ा दो पालियों का बना होता है। प्लूरल मेम्ब्रेन फेफड़ों की सुरक्षा करते हैं। फेफड़े कुंचनशील होते हैं और यदि हम श्वासनली में फूंक मारें तो फेफड़े गुब्बारों की भांति फैल जाते हैं।
वक्षीय गुहा के पसलियों के संकुचन एवं शिथिलन से वक्षीय गुहा का आयतन बढ़ता एवं घटता है जिसके कारण वायु फेफड़े के अन्दर प्रवेश करती है और बाहर निकलती है।
डायफ्राम (Diaphragm): वक्षीय गुहा का निचला फर्श एक पतले पट्ट द्वारा बन्द रहता है, जिसे डायफ्राम कहते हैं। यह वक्ष एवं उदर के बीच गुम्बद के समान पेशीय सेप्टम है। यह देहगुहा को दो भागों में बाँटती है- अग्र वक्ष गुहा एवं पश्च उदर गुहा। यह वक्ष गुहा की तरफ उठा रहता है। उच्छवास (Exhalation) के समय डायफ्राम संकुचित (चपटा) हो जाता है।
पसलियाँ तथा पशुक पेशियाँ: स्तनधारियों में वक्ष गुहा एक बन्द बक्से के समान गुहा होता है जो वक्ष और कशेरुक दण्ड अधरतल पर स्टर्नम, पार्श्व और पसलियों से, पश्च और डायफ्राम से, अग्र ओर गर्दन से घिरी होती है। पास-पास की पसलियों के बीच दो प्रकार की पेशियाँ पाई जाती हैं- (i) वाह्य अन्तरापर्शुक पेशी (External inter coastal muscle), (ii) अन्तः अन्तरापर्शुक पेशी (Internal Inter Coastal Muscle)।