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भारतीय समाज में नारी की स्थिति भी लगभग ऐसी ही रही है। माना जाता है कि वैदिक काल में नारी की स्थिति गरिमामयी थी। उसे शिक्षा- प्राप्ति का अधिकार था। वह विदुषी थी, साहित्य- रचना करती थी, कलाओं में पारंगत थी, धार्मिक अनुष्ठानों में पुरुष के समान स्थान की अधिकारिणी थी। मैत्रेयी, गार्गी आदि नाम इन तथ्यों की पुष्टि भी करते हैं। किंतु रामायण -काल या महाभारत काल तक आते-आते यह स्थिति बदल चुकी थी। सीता जी द्वारा अग्नि परीक्षा देना, राज्याभिषेक के कुछ समय बाद जनता के संतोष के लिए श्रीराम द्वारा गर्भवती सीता जी को वन में भेज देना,द्रौपदी का पाँच-पाँच पतियों का पत्नी बनना, उसके पतियों द्वारा उसे जुए में हार जाना आदि प्रसंग नारी गरिमा पर प्रश्न-चिह्न लगाते हैं। स्थिति उत्तरोत्तर विषम होती चली जाती है । नगरवधू, देवदासी आदि के रूप में उसके व्यक्तिगत सम्मान का हनन किया जाने लगा। मुगलों के आगमन के बाद उसे सौ-सौ पर्दों की ओट में छिपाया जाने लगा। कई जगह लड़की के पैदा होते ही उसे मारा जाने लगा। उसे भोग विलास की वस्तु समझकर उसका क्रय- विक्रय होने लगा। साहित्य में भी उसका स्वतंत्र व्यक्तित्व तिरोहित हो गया। पूरा रीतिकालीन साहित्य नारी के प्रति लोलुप- कामुक दृष्टि से रचा गया है।
प्रश्न 1. किस काल में नारी की स्थिति गरिमामयी थी? *
भक्ति काल
वैदिक काल
महाभारत -काल
रामायण- काल
प्रश्न 2. अग्नि परीक्षा किसे देनी पड़ी? *
नगरवधू को
देवदासी को
सीता को
द्रौपदी को
प्रश्न 3. किस काल का साहित्य नारी के प्रति लोलुप- कामुक दृष्टि से रचा गया है? *
रीतिकाल साहित्य
आदिकाल साहित्य
भक्ति काल साहित्य
आधुनिक काल साहित्य
प्रश्न 4. ‘नगरवधू’ समास का विग्रह कीजिए ? *
नगर में वधू
नगर के लिए वधू
नगर से वधू
नगर की वधू
प्रश्न 5. उपर्युक्त गद्यांश का शीर्षक चुने। *
वैदिक काल में नारी की दशा
भारतीय समाज में नारी की दशा
वर्तमान काल में नारी की दशा
इनमें से कोई नहीं
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'रविवार का दिन, वैशाखी का त्योहार, 13 अप्रैल सन् 1919, समय संध्या के 4:30 बजे। मेरे आंगन में एक सभा का आयोजन हुआ था।उस समय शहर की जो बुरी स्थिति थी उसी पर वे विचार करना चाहते थे और चाहते थे शाँति स्थापना के साधनों की खोज। वे सब लोग बहुत गंभीर थे । किसी प्रकार की शरारत करना वे किसी भी तरह नहीं चाहते थे। इस सभा का ऐलान पहले ही दिन कर दिया गया था। उसी दिन शाम को सरकार ने मार्शल लॉ का ऐलान कर दिया। सरकार पंजाब के प्यारे नेताओं को पहले ही जेल में बंद कर चुकी थी। डॉक्टर गुरुबख़्श राय ने यह सभा बुलाई थी। उन्होंने लोगों से कहा कि मार्शल लॉ का ऐलान हो चुका है, सभा बंद कर दी जाए । लेकिन लोग नहीं माने।'मैं देख रहा था। मेरा आँगन पूरी तरह भरा हुआ था। डॉक्टर किचलू का चित्र कुर्सी पर रखा था। डॉ. गुरुबख़्श राय ने ब्रिटिश सम्राट के प्रति अपनी भक्ति प्रकट करते हुए पहला प्रस्ताव पेश किया। यह एक परिपाटी बन गई थी। लोग रोलेट एक्ट के कारण बड़े दुःखी थे। गाँधी जी ने हड़ताल का ऐलान कर दिया था। सारे देश में 'न भूतो न भविष्यति ' ऐसी हड़ताल हुई थी। फिर भी उन्होंने राज भक्ति का प्रस्ताव पास किया। इसके बाद वैद्य दुर्गादास दूसरा प्रस्ताव पढ़ने के लिए खड़े हुए।इसमें सरकार की इस बात की निंदा की गई थी कि उसने जनता पर जुल्म किए हैं। लेकिन अभी प्रस्ताव की दो पंक्तियाँ भी नहीं पढ़ी गई थीं कि तूफान आ गया।'
प्रश्न 6. यह गद्यांश ‘अगर यह बोल पाते: जलियाँवाला बाग़ ' निबंध में से लिया गया है, इसके लेखक कौन हैं? *
विष्णु प्रभाकर
धर्मपाल मैनी
अध्यापक पूर्ण सिंह
जयशंकर प्रसाद
प्रश्न 7. 'न भूतो न भविष्यति ' का यहाँ क्या अर्थ है ? *
भविष्य में सभा में भूतों के आने की आशंका थी
न ऐसा पहले कभी हुआ था और न भविष्य में होगा
सभा में भूत नहीं थे
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answer 1 . वैदिक काल
answer 2. सीता को
answer 3.रीतिकाल साहित्य
answer 4. नगर की वधु
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भूतो न भविष्यति ' का यहाँ क्या अर्थ है ? *
भविष्य में सभा में भूतों के आने की आशंका थी
न ऐसा पहले कभी हुआ था और न भविष्य में होगा
सभा में भूत नहीं थे
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