प्रस्तुत कविता में नारी श्रृंगार का अभिप्राय स्पष्ट करें
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श्रृंगार नारी जीवन का अभिमान है। 'श्रृंगार करना सौभाग्य का प्रतीक माना जाता है, श्रृंगार को सौभाग्य वर्धक माना जाता है। ... ' 'भले ही जमाना कितना बदल गया हो,कितना आगे निकल गया हो,लेकिन नारी के लिये उसका श्रृंगार आज भी उसके लिए उतना ही सम्मान जनक है जितना सदियों पहले होता था,और हमेशा ही रहेगा।
प्रस्तुत कविता नारी श्रृंगार का अभिप्राय स्पष्ट करें।
नारी श्रृंगार' कविता का अभिप्राय है :
'नारी श्रंगार' कविता के माध्यम से कवि ने नारी को उस तरह का श्रंगार करने के लिए प्रेरित किया है जो कि पारंपरिक श्रृंगार नहीं है। कवि ने नारी को बिंदी और काजल जैसे आभूषणों से श्रृंगार करने की जगह आंतरिक गुणों का श्रृंगार करने के लिए प्रेरित किया है।
नारी शृंगार कविता में कवि के कहने का अभिप्राय यह है कि नारी को संतुष्टि का सूट सिला कर ज्ञान की चादर ओढ़ लेनी चाहिए यानि ज्ञान प्राप्त करके अपने अंदर आत्म संतुष्टि को विकसित करना चाहिए। नारी को मीठी वाणी और विनम्रता का आभूषण पहनना चाहिए। नारी धर्म, लोक लाज एवं शर्म के आभूषण पहनना चाहिए। तब नारी पूर्ण रूप से श्रृंगार युक्त हो जाएगी। कवि ने आंतरिक गुणों को ही नारी का सच्चा श्रृंगार कहा है। यही इस कविता का अभिप्राय है। दया, प्रेम, मानवता, विनम्रता, लोक लाज लग जा आदि यही नारी के सच्चे आभूषण हैं।
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