प्रस्तुत पाठ में गोपियों की दशा कैसी थी
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प्रस्तुत पदों के आधार पर स्पष्ट है कि गोपियाँयोग-साधना को नीरस, व्यर्थ और अवांछित मानती हैं।गोपियों के दृष्टि में योग उस कड़वी ककड़ी के सामान है जिसे निगलना बड़ा ही मुश्किल है। ... परन्तुगोपियों को योग की आवश्यकता है ही नहीं क्योंकिगोपियाँ अपने मन व इन्द्रियाँ तो कृष्ण के अनन्य प्रेम में पहले से ही एकाग्र है।
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