६) प्रस्तुत पद्यांश से अपनी पसंद से की किन्ही चार पंक्तियों का सरल अर्थ लिखिए
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प्रस्तुत पद्यांश से अपनी पसंद से की किन्ही चार प्रस्तुत पद्यांश से अपनी पसंद से की किन्ही चार पंक्तियों का सरल अर्थ लिखिए :
"घन घमंड --------- पाइ कुसंग सुसंग"
"रामचरित मानस" गोस्वामी तुलसीदास कृत अतुलनीय रचना है | इसके किष्किन्धाकाण्ड से लिया गया ये वर्षाकालीन वर्णन अनुपम है | वैसे तो ये पूरा वर्णन बेजोड़ है किन्तु ये चार पंक्तियाँ मुझे विशेषतया पसंद है |----- "बरषहिं जलद ------माया लपटानी" इनका अर्थ है कि बादल धरती के पास आकर ऐसे वर्षा कर रहें है जैसे नए-नए विद्वान ज्ञान प्राप्त करकें विनम्र हो जाते है | आगे की पंक्तियों मे वे कहते है कि बूंदों की चोट पहाड़ इस प्रकार सहन कर रहें है जैसे दुष्टों के वचन संत लोग सहन कर लेते है | छोटी-छोटी नदियाँ वर्षाकाल के पानी से भरकर अपनी मर्यादाएं (सीमारेखा) तोड़कर इसप्रकार चल रही है जैसे थोड़ा-सा धन पाते ही दुष्ट लोग इतराने लगते है | अर्थात अपनी स्थिति को भुलाकर अपनी लघुता प्रकट कर देते है | अगली चौपाई मे वे कहते है कि पृथ्वी पर गिरते ही वर्षा का पानी गँदला हो जाता है जिस प्रकार इस संसार में आते ही जीव को परमात्मा (ईश्वर) की माया लपेट लेती है | अर्थात वह अपने वास्तविक स्वरुप को भूल जाता है तथा सांसारिक प्रपंच में उलझ जाता है |
"घन घमंड --------- पाइ कुसंग सुसंग"
"रामचरित मानस" गोस्वामी तुलसीदास कृत अतुलनीय रचना है | इसके किष्किन्धाकाण्ड से लिया गया ये वर्षाकालीन वर्णन अनुपम है | वैसे तो ये पूरा वर्णन बेजोड़ है किन्तु ये चार पंक्तियाँ मुझे विशेषतया पसंद है |----- "बरषहिं जलद ------माया लपटानी" इनका अर्थ है कि बादल धरती के पास आकर ऐसे वर्षा कर रहें है जैसे नए-नए विद्वान ज्ञान प्राप्त करकें विनम्र हो जाते है | आगे की पंक्तियों मे वे कहते है कि बूंदों की चोट पहाड़ इस प्रकार सहन कर रहें है जैसे दुष्टों के वचन संत लोग सहन कर लेते है | छोटी-छोटी नदियाँ वर्षाकाल के पानी से भरकर अपनी मर्यादाएं (सीमारेखा) तोड़कर इसप्रकार चल रही है जैसे थोड़ा-सा धन पाते ही दुष्ट लोग इतराने लगते है | अर्थात अपनी स्थिति को भुलाकर अपनी लघुता प्रकट कर देते है | अगली चौपाई मे वे कहते है कि पृथ्वी पर गिरते ही वर्षा का पानी गँदला हो जाता है जिस प्रकार इस संसार में आते ही जीव को परमात्मा (ईश्वर) की माया लपेट लेती है | अर्थात वह अपने वास्तविक स्वरुप को भूल जाता है तथा सांसारिक प्रपंच में उलझ जाता है |
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