६. प्रस्तुत
श्लोक का अर्थ A4 साइज
पेपर में आप
स्वयं लिखे अथवा अंतर्जात के माध्यम से पता
करके सुंदर और स्पष्ट अक्षरों में लिखै और
घर के दीवाल पर चिपकाकर फोटो किलक करके
अपने संस्कृत शिक्षक को प्रेषित करें
1
श्लोक- उधमेन हि सिध्यन्ति कार्याणि न मनोययै:
न हि सुप्तस्य सिंहस्थ प्रविशन्ति मुकेश मृगाः ।। १।।
माता शत्रु पिता वैरी येन बालो न पाठित:
न सोभते सभामध्ये हंसमध्ये बको यशा ॥ २ ॥
Answers
Answered by
1
Answer:
- उद्यमेन हि सिध्यन्ति कार्याणि न मनोरथैः। न हि सुप्तस्य सिंहस्य प्रविशन्ति मुखे मृगाः।।
अर्थ - जिस प्रकार सोते हुए सिंह के मुँह में मृग स्वयं नहीं प्रवेश करता, उसी प्रकार केवल इच्छा करने से सफलता प्राप्त नहीं होती है| अपने कार्य को सिद्ध करने के लिए मेहनत करनी पड़ती है
2.माता शत्रुः पिता वैरी येन बालो न पाठितः |
न शोभते सभा मध्ये हंस मध्ये बको यथा ||
अर्थ - वह् माता एक शत्रु के समान है और पिता वैरी के समान
है जो अपने बालकों को शिक्षित नहीं करते हैं , क्योंकि बडे हो कर वे विद्वानों की सभा (समाज) में शोभा और सम्मान नहीं पाते है और उनकी स्थिति सुन्दर हंसों के झुण्ड में एक बगुले की सी हो जाती है |
Similar questions