Political Science, asked by divya2804, 6 months ago

प्रस्तावना में वर्णित राजनीतिक मूल्यों की आवश्यकता किसे होती है​

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Answered by sweetysingh5312
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भारत के संविधान की मसौदा समिति (Drafting Committee) ने यह देखा था कि प्रस्तावना/उद्देशिका (Preamble) को नए राष्ट्र की महत्वपूर्ण विशेषताओं को परिभाषित करने तक ही सीमित होना चाहिए और उसके सामाजिक-राजनीतिक उद्देश्यों एवं अन्य महत्वपूर्ण मामलों को संविधान में और विस्तार से समझाया जाना चाहिए। संविधान के निर्माताओं का अंतिम उद्देश्य एक कल्याणकारी राज्य और समतामूलक समाज का निर्माण करना था, जिसमें भारत के उन लोगों के उद्देश्य और आकांक्षाएं शामिल हों जिन्होंने देश की आजादी की प्राप्ति के लिए अपना सर्वस्व बलिदान कर दिया था।

Answered by Anonymous
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Answer:

प्रस्तावना या उद्देशिका को भारत के संविधान की आत्मा इसलिए भी कहा जा सकता है, क्योंकि इसमें संविधान के बारे में सब कुछ बहुत संक्षेप में मौजूद है। हमे यह ध्यम में रखना चाहिए कि इसे 26 नवंबर, 1949 को अपनाया गया था और इसे 26 जनवरी, 1950 से लागू किया गया था, जिसे आज हम गणतंत्र दिवस के रूप में भी जानते हैं। गोलक नाथ बनाम पंजाब राज्य AIR 1967 SC 1643 के मामले में तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश, सुब्बा राव ने यह कहा था कि "एक अधिनियम की प्रस्तावना, उसके उन मुख्य उद्देश्यों को निर्धारित करती है, जिसे प्राप्त करने का इरादा कानून रखता है।"

भारत के संविधान की प्रस्तावना (Preamble), 13 दिसंबर, 1946 को संविधान सभा में जवाहरलाल नेहरू द्वारा पेश किये गए उद्देश्य प्रस्ताव (Objective Resolution) पर आधारित है। यह संकल्प/प्रस्ताव 22 जनवरी, 1947 को अपनाया गया था। मौजूदा लेख में हम संविधान की प्रस्तावना को समझने और उसके मुख्य पहलुओं को रेखांकित करने का प्रयास करेंगे। तो चलिए शुरू करते हैं।

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