प्रसव वेदना सह जब जननी
हृदय स्वप्न निज मूर्त बनाकर
स्तन्यदान दे उसे पालती,
पग-पग नव शिशु पर न्योछावर
नहीं प्रार्थना इससे सुंदर !
❤️❤️❤️ भावार्थ लिखिए❤️❤️❤️
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प्रसव वेदना सह जब जननी
हृदय स्वप्न निज मूर्त बनाकर
स्तन्यदान दे उसे पालती,
पग-पग नव शिशु पर न्योछावर
नहीं प्रार्थना इससे सुंदर !
संदर्भ ➲ यह पंक्तियां कवि ‘सुमित्रानंदन पंत’ द्वारा रचित कविता “नहीं कुछ इससे बढ़कर” के प्रथम खंड की हैं।
भावार्थ ➲ इन पंक्तियों का भावार्थ यह है कि जननी अर्थात माँ जब प्रसव की अपार कष्टदायक वेदना को सहकर अपने शिशु को जन्म देती है तो वह अपने हृदय के सुंदर सपने को एक साकार रूप प्रदान करती है। वह बच्चे को स्तनपान कराकर पालती-पोसती है, अपने शिशु की देखभाल करती है, उसकी सुंदर बालसुलभ मासूम मनभावन क्रियाओं पर न्योछावर होती है। माँ से बढ़कर इस संसार में दूसरा कोई नहीं है, जिसकी प्रार्थना की जाए।
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प्रसव वेदना सह जब जननी
हृदय स्वप्न निज मूर्त बनाकर
स्तन्यदान दे उसे पालती,
पग-पग नव शिशु पर न्योछावर
नहीं प्रार्थना इससे सुंदर !
संदर्भ ➲ यह पंक्तियां कवि ‘सुमित्रानंदन पंत’ द्वारा रचित कविता “नहीं कुछ इससे बढ़कर” के प्रथम खंड की हैं।
भावार्थ ➲ इन पंक्तियों का भावार्थ यह है कि जननी अर्थात माँ जब प्रसव की अपार कष्टदायक वेदना को सहकर अपने शिशु को जन्म देती है तो वह अपने हृदय के सुंदर सपने को एक साकार रूप प्रदान करती है। वह बच्चे को स्तनपान कराकर पालती-पोसती है, अपने शिशु की देखभाल करती है, उसकी सुंदर बालसुलभ मासूम मनभावन क्रियाओं पर न्योछावर होती है। माँ से बढ़कर इस संसार में दूसरा कोई नहीं है, जिसकी प्रार्थना की जाए।