Hindi, asked by ysuchitra189, 5 months ago

प्रश्न 1. गाँधी जी ने शिक्षण के समान में हथकरघों की आवश्यकता पर क्यों जोर दिया ? आपके हिसाब से क्या शिक्षण सामाग्री के रूप में हथकरघों का प्रयोग किया जा सकता है ?

Answers

Answered by kumarimanisha8219
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Answer:

राष्ट्रपिता महात्मा गांधी का व्यक्तित्व और कृतित्व आदर्शवादी रहा है। उनका आचरण प्रयोजनवादी विचारधारा से ओतप्रोत था। संसार के अधिकांश लोग उन्हें महान राजनीतिज्ञ एवं समाज सुधारक के रूप में जानते हैं। पर उनका यह मानना था कि सामाजिक उन्नति हेतु शिक्षा का एक मत्वपूर्ण योगदान होता है।

अतः गांधीजी का शिक्षा के क्षेत्र में भी विशेष योगदान रहा है। उनका मूलमंत्र था - 'शोषण-विहीन समाज की स्थापना करना'। उसके लिए सभी को शिक्षित होना चाहिए। क्योंकि शिक्षा के अभाव में एक स्वस्थ समाज का निर्माण असंभव है। अतः गांधीजी ने जो शिक्षा के उद्देश्यों एवं सिद्धांतों की व्याख्या की तथा प्रारंभिक शिक्षा योजना उनके शिक्षादर्शन का मूर्त रूप है। अतएव उनका शिक्षादर्शन उनको एक शिक्षाशास्त्री के रूप में भी समाज के सामने प्रस्तुत करता है। उनका शिक्षा के प्रति जो योगदान था वह अद्वितीय था। उनका मानना था कि मेरे प्रिय भारतराष्ट्रपिता महात्मा गांधी का व्यक्तित्व और कृतित्व आदर्शवादी रहा है। उनका आचरण प्रयोजनवादी विचारधारा से ओतप्रोत था। संसार के अधिकांश लोग उन्हें महान राजनीतिज्ञ एवं समाज सुधारक के रूप में जानते हैं। पर उनका यह मानना था कि सामाजिक उन्नति हेतु शिक्षा का एक मत्वपूर्ण योगदान होता है।

Answered by periwinkle39
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राष्ट्रपिता महात्मा गांधी का व्यक्तित्व और कृतित्व आदर्शवादी रहा है। उनका आचरण प्रयोजनवादी विचारधारा से ओतप्रोत था। संसार के अधिकांश लोग उन्हें महान राजनीतिज्ञ एवं समाज सुधारक के रूप में जानते हैं। पर उनका यह मानना था कि सामाजिक उन्नति हेतु शिक्षा का एक मत्वपूर्ण योगदान होता है।

अतः गांधीजी का शिक्षा के क्षेत्र में भी विशेष योगदान रहा है। उनका मूलमंत्र था - 'शोषण-विहीन समाज की स्थापना करना'। उसके लिए सभी को शिक्षित होना चाहिए। क्योंकि शिक्षा के अभाव में एक स्वस्थ समाज का निर्माण असंभव है। अतः गांधीजी ने जो शिक्षा के उद्देश्यों एवं सिद्धांतों की व्याख्या की तथा प्रारंभिक शिक्षा योजना उनके शिक्षादर्शन का मूर्त रूप है। अतएव उनका शिक्षादर्शन उनको एक शिक्षाशास्त्री के रूप में भी समाज के सामने प्रस्तुत करता है। उनका शिक्षा के प्रति जो योगदान था वह अद्वितीय था। उनका मानना था कि मेरे प्रिय भारतराष्ट्रपिता महात्मा गांधी का व्यक्तित्व और कृतित्व आदर्शवादी रहा है। उनका आचरण प्रयोजनवादी विचारधारा से ओतप्रोत था। संसार के अधिकांश लोग उन्हें महान राजनीतिज्ञ एवं समाज सुधारक के रूप में जानते हैं। पर उनका यह मानना था कि सामाजिक उन्नति हेतु शिक्षा का एक मत्वपूर्ण योगदान होता है।

अतः गांधीजी का शिक्षा के क्षेत्र में भी विशेष योगदान रहा है। उनका मूलमंत्र था - 'शोषण-विहीन समाज की स्थापना करना'। उसके लिए सभी को शिक्षित होना चाहिए। क्योंकि शिक्षा के अभाव में एक स्वस्थ समाज का निर्माण असंभव है। अतः गांधीजी ने जो शिक्षा के उद्देश्यों एवं सिद्धांतों की व्याख्या की तथा प्रारंभिक शिक्षा योजना उनके शिक्षादर्शन का मूर्त रूप है। अतएव उनका शिक्षादर्शन उनको एक शिक्षाशास्त्री के रूप में भी समाज के सामने प्रस्तुत करता है। उनका शिक्षा के प्रति जो योगदान था वह अद्वितीय था। उनका मानना था कि मेरे प्रिय भारत में बच्चों को 3H की शिक्षा अर्थात् head hand heart की शिक्षा दी जाए। शिक्षा उन्हें स्वावलंबी बनाये और वे देश को मजबूत बनाने में महत्वपूर्ण योगदान देराष्ट्रपिता महात्मा गांधी का व्यक्तित्व और कृतित्व आदर्शवादी रहा है। उनका आचरण प्रयोजनवादी विचारधारा से ओतप्रोत था। संसार के अधिकांश लोग उन्हें महान राजनीतिज्ञ एवं समाज सुधारक के रूप में जानते हैं। पर उनका यह मानना था कि सामाजिक उन्नति हेतु शिक्षा का एक मत्वपूर्ण योगदान होता है।

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