Social Sciences, asked by RockstarAryan4987, 10 months ago

प्रश्न 1.
जैव विविधता विनाश के कारणों को बताइए।

Answers

Answered by rohma63
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Explanation:

जैव विविधता का क्षरण (ह्रास) एक नकारा नहीं जा सकने वाला सत्य है। कुछ अध्ययनों से ज्ञात होता है कि वनस्पतियों की हर आठ में से एक प्रजाति विलुप्तता के खतरे से जूझ रही है। जैव विविधता के लिए पैदा हुए ज्यादातर जोखिम प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से बढ़ती जनसंख्या, जो बेलगाम दर से बढ़ रही है, से जुड़े हुए हैं। दुनिया की जनसंख्या इस समय 6 अरब से अधिक है जिसके 2050 तक 10 अरब तक पहुंचने के अनुमान व्यक्त किए गए हैं। तेजी से बढ़ती इस जनसंख्या से दुनिया के पारिस्थितिकी तंत्रों और प्रजातियों पर अतिरिक्त दबाव तो पड़ना ही है।

प्राकृतिक आवासों का आग्मन

सन् 1000 से 2000 के मध्य हुए प्रजातीय विलुप्तताओं में से अधिकांश मानवीय गतिविधियों के चलते प्राकृतिक आवासों के विनाश के कारण हुई हैं। जैव विविधता को नष्ट करने में सहयोगी कारक निम्न हैं जो मानवीय गतिविधियों से संबंधित हैं : अधिक जनसंख्या, वनों का कटाव, वायु प्रदूषण, जल प्रदूषण, मृदा संदूषण एवं ग्लोबल वार्मिंग (या जलवायवीय परिवर्तन)। ये सभी कारक अधिक जनसंख्या से जुड़े हुए हैं जो जैव विविधता के ऊपर संयुक्त रूप से प्रभाव डालते हैं। जब किसी एक फसल को उगाने के लिए वनों को काटा जाता है तो भी जैव विविधता को दरकिनार कर दिया जाता है।

निर्दय खूनखराबा

कई बार किसी प्रजाति को मार कर उसे विलुप्त कर दिया जाता है। पैसेन्जर कबूतर (एक्टोपिस्टेस माइग्रेटोरियस), जो धरती पर एक समय बहुतायत में पाए जाते थे, मानवीय निर्दयता के कारण विलुप्त हो गया। सन् 1878 में, यू.एस.ए. के मिशीगन में हर यात्री (पैसेन्जर) कबूतर

यात्री (पैसेन्जर) कबूतर

रोज 50,000 पक्षियों को मारा जाता था और मौत का ये तांडव लगभग पांच माह चला। इस स्तर के हत्याकांड को तो प्रकृति की भरपाई करने वाली ताकत भी नहीं झेल सकती है।

पर्यटन

पिछले कुछ समय से, पर्यटन ने बहुत सी समस्याओं को उत्पन्न किया है क्योंकि पर्यटकों की अत्यधिक संख्या कई बार किसी क्षेत्र विशेष पर भारी पड़ जाती है। इसीलिए हम पारिस्थितिकी मित्रा पर्यटन या ईकोटूरिज़्म की बात करते हैं, तो संभावित पर्यावरणीय प्रभाव कम पड़ता है और इससे मूल निवासियों को टिके रहने में गैलेपागोस द्वीप जहां चार्ल्स डार्विन ने अपना अध्ययन कार्य किया

गैलेपागोस द्वीप जहां चार्ल्स डार्विन ने अपना अध्ययन कार्य किया

मदद मिलती है जिससे वन्यजीवन एवं प्राकृतिक आवासों के संरक्षण को बल मिलता है। हालांकि, जिम्मेदार पर्यटन भी पारिस्थितिकी संबंधी समस्याएं पैदा कर सकती है। गैलेपागोस द्वीपों की कहानी इसका एक उदाहरण है।

गैलेपागोस द्वीप समूह इक्वाडोर का ही एक भाग हैं। यह 13 प्रमुख ज्वालामुखी द्वीपों 6 छोटे द्वीपों और 107 चट्टानों और द्वीपिकाओं से मिलकर बना है। इसका सबसे पहला द्वीप 50 लाख से 1 करोड़ वर्ष पहले निर्मित हुआ था। सबसे युवा द्वीप, ईसाबेला और फर्नेन्डिना, अभी भी निर्माण के दौर में हैं और इनमें आखिरी ज्वालामुखी उद्गार 2005 में हुआ था। ये द्वीप अपनी मूल प्रजातियों की बहुत बड़ी संख्या के लिए प्रसिद्ध हैं। चाल्र्स डार्विन ने अपने अध्ययन यहीं पर किए और प्राकृतिक चयन द्वारा विकासवाद का सिद्धांत प्रतिपादित किया। यह एक लोकप्रिय पर्यटन स्थल है। 2005 में लगभग 1,26,000 लोगों ने पर्यटक के रूप में गैलेपागोस द्वीपसमूह का भ्रमण किया। इससे न सिर्फ द्वीपों पर मौजूद साधनों को खामियाजा भुगतना पड़ा बल्कि पर्यटकों की बहुत बड़ी संख्या वन्यजीवन को भी विक्षुब्ध कर सकती है। परेशानी को और बढ़ाने के लिए नई प्रजातियों या नई बीमारियों का प्रवेश स्थिति को बिगाड़ सकता है। पर्यटन अब इन द्वीपों पर जैव विविधता के लिए एक गंभीर समस्या का रूप धारण करता जा रहा है।

प्राकृतिक सुरक्षा से खिलवाड़

आमतौर पर यह हर कोई नहीं जानता कि किसी विशिष्ट प्रजाति की समृद्ध विविधता को दूसरी प्रजातियों से प्राकृतिक अवरोध (जैसे महासागर) सुरक्षा प्रदान करते हैं। उदाहरण के लिए यदि आस्ट्रेलिया एक द्वीप नहीं होता तो आस्ट्रेलिया के विशिष्ट प्राणि जीवन एवं वनस्पति जीवन का वास्तव में आज तक बचा रह पाना मुश्किल था। हालांकि जलपोत एवं वायुयानों की मदद से आज बहुत दूर स्थित प्राणि प्रजातियों को नजदीक पहुंचा दिया गया है जो जैव विविधता के लिए अत्यंत घातक हो सकता है। यदि हम विभिन्न पारिस्थितिकी क्षेत्रों की प्रजातियों को एक जगह रहने की गतिविधि को चालू रखें तो यह संभव है कि आक्रामक, ‘महाप्रजातियां’ जल्द ही दुनिया पर राज करने लगें, और बाकी सब पाठ्यपुस्तकों में चित्रों के रूप में ही बच पाएगा।

मानवीय जैवसंहति के रूप में रूपान्तरण

वैज्ञानिकों ने इंगित किया है कि जैव विविधता सिर्फ एक ही प्रजाति के अिस्तत्व के लिए गायब होती जा रही है और वह प्रजाति है इन्सान। इसके पीछे दिया जाने वाला तर्क यह है कि हालांकि विलुप्त हो रही प्रजातियां इन्सानी भोजन के रूप में प्रयोग की जाने वाली प्रजातियां नहीं हैं परन्तु उनका बायोमास यानी जैवसंहति मानव भोजन में परिवर्तित होता जा रहा है जब उनके प्राकृतिक आवासों को खेती की जमीन के रूप में प्रयोग कर लिया जाता है। एक अनुमान के अनुसार पृथ्वी के बायोमास का चालीस फीसदी से ज्यादा हिस्सा मात्रा कुछ ही प्रजातियों से जुड़ा है जिसमें मानवीय, पालतू पशु और फसलें सम्मिलित हैं।

वैज्ञानिक चेतावनी देते हैं कि चूंकि प्रजातीय प्रचुरता के घटने से पारिस्थितिकी तंत्रों की टिकाऊ क्षमता घटती है, इसलिए विश्व के पारिस्थितिकी तंत्र विनाश की ओर बढ़ रहे हैं।

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