प्रश्न.1. निम्नलिखित पंक्तियों कि व्याख्या कीजिए
पुष्प-पुष्प से तंद्रालस
लालसा खींच लूँगा मैं,
अपने नव जीवन का अमृत
सहर्ष सींच दूंगा मैं
द्वार दिखा दूंगा फिर उनको।
हैं मेरे वे जहाँ अनंत
अभी न होगा मेरा अंत।
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Answer:
पुष्प-पुष्प—प्रत्येक फूल। तंद्रालस —नींद की खुमारी या नींद से उत्पन्न आलस्य। लालसा—इच्छा। नव—नया। अमृत—सुधा। सहर्ष—खुशीपूर्वक। द्वार—दरवाज्जा। अनंत—जिसका कोई अंत न हो।
प्रसंग— प्रस्तुत काव्य पंक्तियाँ हमारी पाठ्यपुस्तक ‘वसंत, भाग-3, में संकलित ‘ध्वनि’ नामक कविता से ली गई हैं। इस कविता के रचयिता सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ हैं।
इन पंक्तियों में कवि पुष्पों यानि नवयुवको के अंदर के आलस्य को दूर करके उन्हें अपने जीवन रूपी अमृत से सींचना चाहता है ताकि वे अनंतकाल तक खिलकर अपना सौंदर्य बिखेरते रहें।
व्याख्या— कवि रातभर सोए और अलसाये , रहनेवाले प्रत्येक पुष्प नवयुवक नींदभरी आँखों से आलस्य को दूर करना चाहता है अर्थात कवि उनका आलस्य दूरकर उन्हें और जागरूक बनाना चाहता है। कवि उन पुष्पों को हरा-भरा बनाए रखने के लिए उन्हें अपने नवजीवन के अमृत से सींचना चाहता है। कवि अपने जीवन में भी आशा एवं उत्साह का संचार करके रचनात्मक कार्य करना चाहता है। अभी उसे जीवन में बहुत-से काम करने हैं। वह प्रत्येक पुष्प अर्थात हर नवयुवक से उसका आलस्य छीन लेना चाहता है। उसे उत्साहित करना चाहता है। कवि का अंतर्मन चाहता है कि जिस प्रकार से फूल खिलकर अनंतकाल तक अपनी महक एवं सौंदर्य विखेरते हैं उसी प्रकार देश का प्रत्येक युवक भी अपने रचनात्मक कार्यों के सौंदर्य को वसंत के सौंदर्य की भांति चारो और अनंतकाल बिखेरता रहे। जीवन में आशा एवं उत्साह से भरपूर कवि इन फूलों को अपने जीवन का द्वार दिखा देना चाहता है, ताकि फूलों के समान उसका जीवन भी महक उठे। कवि के जीवन में अभी वसंत का आगमन हुआ है और उसका अभी अंत नहीं होगा।
विशेष—
‘पुष्प-पुष्प’ में पुनप्तक्ति प्रकाश अलंकार है ‘नव जीवन का अमृत’ में रूपक अलंकार है।
‘सहर्ष सींच दूँगा’ ,’द्वार दिखा दूँगा’ में अनुप्रास अलकार है।
कवि के कल्पनाशील होने और रचनात्मक होने का प्रमाण मिलता है |
काव्यांश की भाषा तत्सम ( पुष्प, द्वार , अनंत, अमृत ,सहर्ष) शब्दों से युक्त है |