Hindi, asked by asherkam178, 8 months ago

प्रश्न 1. 'देवसेना का गीत' कविता का प्रतिपाद्य स्पष्ट कीजिए
।...

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Answered by kundusanjay159
5

Answer:

स्कंदगुप्त नाटक

Explane

देवसेना का गीत’ प्रसाद कृत स्कंदगुप्त नाटक से उद्धृत है। हूणों के आक्रमण से आर्यावर्त संकट में है। मालव नरेश बंधुवर्मा सहित परिवार के सभी लोग राष्ट्र रक्षार्थ वीरगति पा चुके है। बंधुवर्मा की बहन देवसेना स्कन्दगुप्त से प्रेम करती थी लेकिन स्कन्दगुप्त का रूझान विजया के प्रति था। नाटक में कथानक मोङ पर स्कन्दगुप्त स्वयं देवसेना से प्रणय निवेदन करता है किंतु तब देवसेना कहती है- इस जन्म के देवता और उस जन्म के प्राप्य क्षमा! और वह वृद्ध पर्णदत्त के साथ आश्रम में गाना गाकर भिक्षावृत्ति से जीवन-निर्वाह करती है। उधर स्कन्दगुप्त आजीवन ब्रह्मचर्य व्रतधारण कर लेता है।

आह! वेदना मिली विदाई!

मैंने भ्रम-वश जीवन संचित,

मधुकरियों की भीख लुटाई।

छलछल थे संध्या के श्रमकण,

आँसू-से गिरते थे प्रतिक्षण।

मेरी यात्रा पर लेती थीं-

नीरवता अनंत अँगङाई।

श्रमित स्वप्न की मधुमाया में,

गहन-विपिन की तरु-छाया में,

पथिक उनींदी श्रुति में किसने-

यह विहाग की तान उठाई।

लगी सतृष्ण दीठ थी सबकी,

रही बचाए फिरती कबकी।

मेरी आशा आह! बावली,

तूने खो दी सकल कमाई।

चढ़कर मेरे जीवन-रथ पर,

प्रलय चल रहा अपने पथ पर।

मैंने निज दुर्बल पद-बल पर,

उससे हारी-होङ लगाई।

लौटा लो यह अपनी थाती

मेरी करुणा हा-हा खाती

विश्व! न सँभलेगी यह मुझसे

इससे मन की लाज गँवाई।

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