प्रश्न 1). ऄधोिििखतपदेषु धातवः के सितत ? (6)
पदम् धातुः
यथा - पिित पि्
करोित .....................
पश्य ......................
भवेत् .......................
ितष्ठित ......................
धावति ......................
खादति ........................
Answers
Answer:
संस्कृत कथा-साहित्य के शिरोमणि, कश्मीरी पण्डित सोमदेव की अनुपम रचना ‘कथासरित्सागर’ है। इनके स्थिति-काल और परिवार का कोई भी परिचय अद्यावधि उपलब्ध नहीं है। इन्हें कश्मीर के राजा अनन्त का आश्रित माना जाता है तथा उन्हीं के स्थिति-काल से इनके स्थिति-काल का भी अनुमान किया जाता है। ‘कथासरित्सागर’ नाम से ही इस ग्रन्थ में अनेक कथाओं का होना स्पष्ट है। इसकी अधिकांश कथाएँ गुणाढ्य की ‘बृहत्कथा’ (UPBoardSolutions.com) से ली गयी हैं। ‘कथासरित्सागर’ में 18 लम्बक, 124 तरंग और 21,389 पद्य हैं। ‘पञ्चतन्त्र’ और ‘हितोपदेश’ के समान ही इसकी कथाओं में भी मुख्य कथा के भीतर अनेक छोटी-छोटी अन्तर्कथाएँ निहित हैं। इसमें पशु-पक्षियों, भूत-पिशाचों, मायावी कन्याओं, जादू-टोने, राजाओं, राज्यतन्त्र के षड्यन्त्रों इत्यादि विषयों को लेकर अनेकानेक कथाएँ लिखी गयी हैं, जिनमें से कुछ सत्य पर आधारित हैं तो कुछ नितान्त कपोल-कल्पित। रचना की भाषा-शैली के रोचक, सरल और प्रवाहपूर्ण होने के कारण कहानियाँ व तत्सम्बन्धित ज्ञान हृदयग्राही हैं।दीपकर्णि को शंकर द्वारा पुत्र-प्राप्ति का उपाय बताना – प्राचीनकाल में दीपकर्णि नाम के एक पराक्रमी राजा थे। उनकी शक्तिमती नाम की पत्नी थी। एक दिन उपवन में सोते हुए उसको साँप ने काट लिया और उसकी मृत्यु हो गयी। प्राणों से अधिक प्रिय रानी के दु:ख से दु:खी होकर पुत्रहीन होने पर भी दीपकर्ण ने दूसरा विवाह नहीं किया। एक बार स्वप्न में भगवान् शंकर ने उसे आदेश दिया कि “दीपकर्णि वन में घूमते हुए सिंह पर सवार जिस बालक को तुम देखोगे, उसे लेकर घर आ जाना। वही तुम्हारा पुत्र होगा।”
राजा को पुत्र की प्राप्ति – एक दिन वह राजा शिकार खेलने के लिए जंगल में गया। वहाँ उसने सूर्य के समान तेजस्वी एक बालक को सिंह पर आरूढ़ देखा। राजा ने स्वप्न के अनुसार जल पीने के इच्छुक उस सिंह को बाण से मार दिया। तब सिंह उस शरीर को छोड़कर पुरुष की (UPBoardSolutions.com) आकृति का हो गया।
पुरुषाकृति द्वारा राजा को अपना वृत्तान्त सुनाना – राजा के पूछने पर उसने बताया कि मैं कुबेर का मित्र ‘सात’ नाम का यक्ष हूँ। मैंने पहले एक ऋषि कन्या को गंगा के समीप देखा था और उससे गान्धर्व विधि से विवाह कर अपनी पत्नी बना लिया। उसके बन्धुओं ने क्रोध में आकर शाप दिया कि तुम दोनों सिंह हो जाओ। उसके शाप से हम दोनों सिंह हो गये। सिंहनी तो पुत्र को जन्म देते ही मृत्यु को प्राप्त हो गयी। मैंने इस पुत्र का दूसरी सिंहनियों के दूध से पालन किया है। अब आपका बाण लगने से मैं भी शाप-मुक्त हो गया हूँ। अब आप इस पुत्र को स्वीकार कीजिए, यह कहकर वह यक्ष अन्तर्हित हो गया।
बालक का नामकरण – राजा उस बालक को लेकर घर आ गया और सात नामक यक्ष पर आरूढ़ होने के कारण उसका नाम सातवाहन रख दिया। कालान्तर में दीपकर्णि के वन चले जाने पर अर्थात् वानप्रस्थाश्रम में प्रवेश करने पर सातवाहन सार्वभौम राजा हो गया।
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