प्रश्न 12. " बकस्य प्रतीकारः" कथा सारांशं हिन्दी भाषायां लिखत।
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शब्दार्थ -
- एक वन में एक सियार और एक बगुला रहते थे। उन दोनों में मित्रता थी। एक दिन सवेरे सियार ने बगुले को कहा -"मित्र ! कल तुम मेरे साथ खाना खाओ। " सियार के निमंत्रण से बगुला खुश हु।
- अगले दिन वह भोजन के लिए सियार के निवास-स्थान पर गया। कुटिल स्वभाव वाले सियार ने थाली में बगुले को खीर दी और बगुले से कहा -"मित्र, इस बर्तन में हम दोनों अब साथ ही खाते हैं। " भोजन के समय में बगुले की चोंच थाली से भोजन ग्रहण करने में समर्थ नहीं थी। अतः बगुला केवल खीर देखता रहा। सियार ने तो सारी खीर खा ली।
- सियार के द्वारा ठगे जाने पर बगुले ने सोचा," जिस प्रकार इसने मेरे साथ बर्ताव किया है,उसी प्रकार मैं भी उसके साथ बर्ताव करूँगा।" ऐसा सोचकर उसने सियार से कहा-"दोस्त! तुम भी कल शाम मेरे साथ भोजन करोगे।" बगुले के निमंत्रण से सियार खुश हो गया।
- जब सियार शाम को बगुले के स्थान पर भोजन के लिए गया, तब बगुले ने छोटे मुख वाले कलश में खीर डाली, और सियार से कहा -"दोस्त, हम दोनों इसी बर्तन में साथ ही भोजन करते हैं।" बगुला ने कलश से चोंच द्वारा खीर खाई। परंतु सियार का मुँह कलश में नहीं जा सका। इसलिए बगुला सारी खीर खा गया। सियार केवल ईर्षा से देखता रहा। सियार ने बगुले के प्रति जिस प्रकार का व्यवहार किया बगुले ने भी सियार के साथ वैसा ही व्यवहार करके बदला लिया। कहा भी गया है -
अपने बुरे व्यवहार का परिणाम दुखद ही होता है। इस कारण सुख चाहने वाले मानव को चाहिए कि वह सदा अच्छा व्यवहार करे।
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