प्रश्नः 13 प्रश्नपत्रे समागतान् श्लोकान् विहाय स्वपाठ्यपुस्तकात् कण्ठस्थीकृतं सुभाषितद्वयं लिखत-
प्रश्न: 14 स्वस्य मित्रस्य कृते भगिन्याः पाणिगृहणसंस्कारम् आमन्त्रयितुम् एकं पत्रं संस्कृते लिखत-
Answers
प्रश्नपत्रे समागतान् श्लोकान् विहाय स्वपाठ्यपुस्तकात् कण्ठस्थीकृतं सुभाषितद्वयं लिखत-
गङ्गा पापं शशी तापं दैन्यं कल्परुस्तथा।
पापं तापं च दैन्यं च घ्नन्ति सन्तोमहाशया:।।
अर्थ : गंगा मनुष्यों के समस्त पापों को दूर करती है। चंद्रमा सूर्य के ताप को दूर करता है और शीतलता प्रदान करता है। कल्प वृक्ष सभी की निर्धनता को दूर करता है और सुख ऐश्वर्य प्रदान करता है। लेकिन जो सज्जन होते हैं वह इन तीनों दुःखों यानि पाप, ताप और दीनता को एक साथ ही दूर कर देते हैं।
पुत्राश्च विविधैः शीलैर्नियोज्या: सततं बुधैः।
नीतिज्ञा: शीलसम्पन्ना भवन्ति कुलपूजिता:।।
अर्थ : हर माता-पिता अपनी संतान को तरह-तरह के विधियों द्वारा भिन्न भिन्न प्रकार की विद्या में पारंगत करने के लिए सदैव प्रयत्नशील रहते हैं। उनकी इच्छा रहती है कि उनकी संतान भविष्य में चरित्रवान, शील संपन्न और नीति से परिपूर्ण कुशल विद्वान बने तथा उनको समाज में प्रतिष्ठा दिलाए।