Social Sciences, asked by rajnarayantiwari20, 9 months ago

प्रश्न 2 गांधीजी एक प्रकार की हिंसा की बात कर रहे हैं , वह क्या है ? क्या आपने कभी इसका सामना किया है ? एक उदाहरण दीजिए ।​

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Answered by aryanpanda2112
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Answer:

हमारी पीढ़ी ने और हमारे बाद की सारी पीढ़ियों ने गांधीजी को न देखा, न सुना और न गुना; क्योंकि गांधी से विपरीत जाने वाले भारत देश में गांधीजी केवल एक नाम बन गए | लेकिन जिन्होंने उनको देखा, सुना और  अपनी-अपनी तरह से गुना उनके लिए गांधीजी क्या थे ? कुछ लोग, कुछ बातें !

खान अब्दुल गफ्फार खां

गांधीजी के साथ मेरे जैसे स्नेहपूर्ण और हार्दिक संबंध रहे, वैसे केवल जवाहरलाल नेहरु और राजेंद्र प्रसाद के साथ रहे |

मैंने गांधीजी को सबसे पहले 1920 में दिल्ली में खिलाफत सम्मेलन में देखा था | उनके साथ जवाहरलाल नेहरु, मौलाना आजाद और अन्य लोग भी थे | मुझे उनसे मिलने का अवसर नहीं मिला लेकिन मैंने अनुभव किया कि यही लोग हैं जो देश की स्वतंत्रता और सुख-समृद्धि के लिए तन-मन-धन से काम करेंगे |

दूसरी बार मैं 1928 में कलकत्ता में उनसे मिला | कांग्रेस और खिलाफत सम्मेलन का अधिवेशन था | हम गांधीजी का भाषण सुन रहे थे कि गुस्से से भरा एक नौजवान मंच पर चढ़ आया और गांधीजी को टोकते हुए बोला, ‘महात्माजी, आप कायर हैं, कायर !’ गांधीजी उसकी बात पर खूब हंसे, पर उन्होंने अपना भाषण जारी रखा | मैं गांधीजी का शांत स्वभाव देखकर आश्चर्यचकित रह गया |

अगस्त, 1934 में हजारीबाग जेल से छूटने के बाद मैं पंजाब और उत्तर-पश्चिम सीमाप्रांत को छोड़कर कहीं भी जा सकता था | मुझे गांधीजी ने तार भेज कर अपने पास वर्धा बुलाया और मैं वर्धा चला गया | मैं प्राय: गांधीजी की प्रार्थनाओं में भाग लेता था | एक दिन गांधीजी मुझसे बोले - “आप जानते हैं, शौकत अली और मोहम्मद अली के साथ मेरे अत्यधिक हार्दिक संबंध थे | लेकिन फिर क्या हुआ, मैं नहीं जानता लेकिन वे मुझसे नाराज होकर अलग हो गए | इस बारे में आपकी क्या प्रतिक्रिया है ? आप मेरे साथ कैसा व्यवहार करेंगे ?” मैं बोला - “प्रश्न स्नेह का है | दो व्यक्तियों के बीच संबंधों का बना रहना उनके विचारों और दृष्टिकोण पर निर्भर है | आपका जो दृष्टिकोन या विचार है, वही मेरा भी है | आपका ध्येय सेवा, मानव-प्रेम और इंसान की खुशहाली है | मैं भी यही चाहता हूं | जब तक हमारा और आपका यही दृष्टिकोण रहेगा, हममें झगड़ा नहीं होगा | मतभेद की स्थिति में ही लोग एक-दूसरे से अलग होते हैं |”

वर्धा में मैं उनकी इस बात से बहुत प्रभावित हुआ कि वे हर काम समय पर करते थे | भोजन करने, सोने और प्रार्थना का उनका समय निर्धारित था |

वे थोड़े भी रूढ़िवादी और कट्टरपंथी नहीं थे | मुझे एक उदाहरण याद आता है | वर्धा में जब मैं गांधीजी से मिलने जाता था, तो मेरे बच्चे भी मेरे साथ जाते थे | एक दिन गांधीजी का जन्मदिन पड़ा | उस दिन जब हम गांधीजी के साथ भोजन करने लगे, तो मेरे पुत्र गनी ने उनसे कहा - “मुझे बहुत खुशी है कि मैं यहां आया | मैंने सोचा था कि आपके जन्मदिन पर हमें मिठाई, पुलाव और मुर्गा आदि मिलेगा लेकिन आज भी यहां रोज की तरह कददू बना है |” यह सुनकर गांधीजी बहुत हंसे और मुझसे बोले - “देखो, ये बच्चे हैं | हमें इन्हें वही खाने को देना चाहिए, जो ये चाहते हैं | हमें इनके लिए मांस और अंडों का प्रबंध करना चाहिए |” मैंने कहा - “ये केवल मजाक कर रहे हैं | हम जहां भी जाते हैं, वहां वही खाते हैं, जो मेजबान परोसते हैं और स्वयं भी खाते हैं | यदि आप इनसे और कुछ खाने को कहेंगे, तो ये नहीं खाएंगे |” इसलिए मैं और मेरे बच्चे गांधीजी से सहमत नहीं हुए | लेकिन गांधीजी उनकी इच्छानुसार उन्हें खाना देने को तैयार थे |

मैं गांधीजी के विनोदी स्वभाव से भी बहुत प्रभावित हुआ | वह लड़के-लड़कियों, बूढ़े-जवान सभी के साथ हंसते थे | काफी विनोदप्रिय थे |

एक दिन ऐसा हुआ कि वर्धा आश्रम का भंगी अपना काम छोड़कर भाग गया | गांधीजी को इसकी सुचना दी गई तो वे बोले, “हमें बाल्टी-झाड़ू लेकर स्वयं सफाई करनी चाहिए |” और हम सबने मिलकर सफाई की |

गांधीजी 1938 में दूसरी बार सीमा प्रांत के दौरे पर आए | हमने उनके रात के विश्राम स्थल पर हथियारबंद संतरी तैनात किए | यह एक सुरक्षात्मक कार्रवाई थी | जब गांधीजी ने उन्हें देखा तो बोले - “इनकी क्या आवश्यकता है ?” मैंने कहा, “बापू, ये अनधिकृत व्यक्तियों को अंदर आने से रोकने के लिए रखे गए हैं |” लेकिन गांधीजी इससे सहमत नहीं हुए | बोले - “मुझे इनकी जरूरत नहीं है |” इस घटना का हम पर गहरा प्रभाव पड़ा |

सीमा प्रांत में पहले हिंसा की अनेक घटनाएं होती थीं | अहिंसा का संदेश वहां बाद में पहुंचा | हिंसा के बाद अंग्रेजों का दमनचक्र चलता था, जिसने बहादुर लोगों को भी कायर बना दिया था | लेकिन जब अहिंसा का शुभागमन हुआ, तो कायर से कायर पठान भी बहादुर बन गया | इससे पहले पठान, सिपाहियों से और जेल से इतना डरते थे कि उनमें सिपाहियों से बातचीत करने तक का भी साहस नहीं था | लेकिन अहिंसा ने उनमें साहस, वीरता और भाईचारे की भावना को जन्म दिया और बच्चे भी हंसी-खुशी जेल जाना पसंद करने लगे |

मैं जब 1945 में जेल से छूटा तो अस्वस्थ था | गांधीजी उन दिनों बंबई में बिड़ला भवन में ठहरे हुए थे | उन्होंने मुझे बंबई बुलाया | एक दिन उनसे देश में हिंसा की स्थिति पर चर्चा हुई | मैंने गांधीजी से कहा - “आप लोगों को अहिंसा की शिक्षा देते हैं | आपके पास अनेक सबक हैं | ये धनी लोग हैं ! ये दूसरों को प्रर्याप्त भोजन दे सकते हैं लेकिन देश के लिए ये अपना पैसा खर्च नहीं करते | इनके पास हिंसा के अनेक साधन भी हैं लेकिन आप सीमा प्रांत में वैसी हिंसा नहीं पाएंगे, जैसी हिंसा का यहां काफी जोर है | ऐसा क्यों है ?” मेरे इस प्रश्न पर गांधीजी हंसे और बोले - “लोग कहते हैं कि अहिंसा कायरों के लिए है | लेकिन वास्तव में यह बहादुरों के लिए है | सीमा प्रांत में हिंसा नहीं है, क्योंकि वहां के लोग बहादुर हैं |”

Answered by pinkypearl301
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Answer:

गाँधी जी के विचार में सत्य यदि साधन है तो उसे प्राप्त करने का साधन अहिंसा है। यही परमेश्वर के साक्षात्कार का भी मार्ग है।

Explanation:  गांधीजी को सबसे पहले  दिल्ली में खिलाफत सम्मेलन में देखा था | उनके साथ जवाहरलाल नेहरु, मौलाना आजाद और अन्य लोग भी थे | हजारीबाग जेल से छूटने के बाद पंजाब और उत्तर-पश्चिम सीमाप्रांत को छोड़कर कहीं भी जा सकता था एक दिन ऐसा हुआ कि वर्धा आश्रम का भंगी अपना काम छोड़कर भाग गया | गांधीजी को इसकी सुचना दी गई तो वे बोले,बाल्टी-झाड़ू लेकर स्वयं सफाई करनी चाहिए |

सीमा प्रांत में पहले हिंसा की अनेक घटनाएं होती थीं | अहिंसा का संदेश वहां बाद में पहुंचा | हिंसा के बाद अंग्रेजों का दमनचक्र चलता था, जिसने बहादुर लोगों को भी कायर बना दिया था | जब अहिंसा का शुभागमन हुआ, तो कायर से कायर पठान भी बहादुर बन गया | इससे पहले पठान, सिपाहियों से और जेल से इतना डरते थे कि उनमें सिपाहियों से बातचीत करने तक का भी साहस नहीं था |

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