प्रश्न 2 दिये गए पद्यांश का संदर्भ प्रसंग व्याख्या सहित साहित्यिक विशेषता
लिखिए:-
अंक-4 शब्दसीमा 75-100
छोटी-बडी कई झीलें है
उनके श्यामल नील-सलिल में
समतल देशों से आ-आकर
पावस की उमस से आकुल
तिक्त-मधुर बिसतंतु खोजते
हंसों को चीरते देखा है
बादल को घिरते देखा है
Answers
Explanation:
बादल को घिरते देखा है(badal ko ghirte dekha hai) – [नागार्जुन]
यह कविता नागार्जुन के कविता संग्रह ’युगधारा’ से संकलित है। इसमें कवि ने बादल व प्रकृति के विभिन्न स्वरूपों का वर्णन किया है।
’बादल को घिरते देखा है ’कविता में बादल की प्रकृति के बारे में कवि का अपना चिंतन है। यह बादल कालिदास के मेघदूत है जो विरही के पास संदेश लेकर जाते हैं। इन्हीं बादलों के साथ कस्तूरी मृग की बैचनी, बर्फीली घाटियों में क्रन्दन करते चकवा-चकवी और किन्नर-किन्नरियों के काल्पनिक चित्रण को बादल के साथ सम्बद्ध कर प्रस्तुत किया है। प्रस्तुत कविता कल्पना दृष्टि से कालिदास एवं निराला की काव्य परंपरा की सारथी है।
कविता –
अमल धवल गिरि के शिखरों पर,
बादल को घिरते देखा है।
छोटे-छोट मोती जैसे
उसके शीतल तुहिन कणों को,
मानसरोवर के उन स्वर्णिम
कमलों पर गिरते देखा है।
बादल को घिरते देखा है।
तुंग हिमालय के कंधों पर
छोटी-बङी कई झीलें हैं,
उनके श्यामल नील सलिल में
समतल देशों से आ-आकर
पावस की ऊमस से आकुल
तिक्त-मधुर विसतंतु खोजते
हंसों को तिरते देखा है।
बादल को घिरते देखा है।
भावार्थ: – प्रस्तुत पद्यांश में कवि कहते हैं कि उन्होंने हिमालय के उज्ज्वल शिखरों पर बादलों को घिरते देखा है। कवि ने बादलों के मोती जैसे शीतल कणों को ओस की बूँद के रूप में मानसरोवर झील में स्थित कमल पत्रों पर गिरते देखा है। हिमालय की ऊँची-ऊँची चोटियों पर अनेक झीलें स्थित हैं।इन झीलों के शांत व गहरे नीले जल में मैदानी क्षेत्रों की गर्मी से व्याकुल हंस शरण लेते है। कवि ने इन हंसों को पानी पर तैरते हुए कमलनाल के भीतर स्थित कङवे और मीठे कोमल तंतुओं को खोजते देखा है। इस प्रकार कवि इन झीलों में विचरण करते हुए हंसों का वर्णन करता है।
विशेष:
बादल का मानवीकरण किया गया है। अतः मानवीकरण अलंकार का प्रयोग है।
’छोटे-छोटे’ में पुनरक्ति प्रकाश अलंकार तथा ’मोती जैसे’ में उपमा अलंकार है।
’आ-आकर’, एवं ’श्यामल नील सलिल’ अनुप्रास अलंकार है।
उमस देशज शब्द है।
ऋतु वसंत का सुप्रभात था
मंद-मंद था अनिल वह रहा
बालारुण की मृदु किरणें थीं
अगल-बगल स्वर्णिम शिखर थे
एक-दूसरे से विरहित हो
अलग-अलग रहकर ही जिनको
सारी रात बितानी होती,
निशा काल से चिर-अभिशापित
बेबस उस चकवा-चकई का
बंद हुआ क्रंदन, फिर उनमें
उस महान सरवर के तीरे
शैवालों की हरी दरी पर
प्रणय-कलह छिङते देखा है।
बादल को घिरते देखा है।
Answer: