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प्रश्न 3 गद्यं पठित्वा निर्देशानुसारेण उत्तरत
। हेतु​

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Answered by msjayasuriya4
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Explanation:

NCERT Solutions for Class 12 Sanskrit Chapter 7 दारिद्र्ये दुर्लभं सत्त्वम्

August 13, 2019 by Bhagya

NCERT Solutions for Class 12 Sanskrit Chapter 7 दारिद्र्ये दुर्लभं सत्त्वम् (दरिद्रता में मनोबल का होना दुर्लभ है)

पाठपरिचयः सारांशः च

प्रस्तावना

प्रस्तुतः पाठः ‘चारुदत्तम्’ नाटकस्य प्रथमाङ्कात् सङ्कलितः। नाटकस्य नायकः चारुदत्तः अस्ति। सः उज्जयिनीवासी, रूपवान्, गुणवान् सङ्गीतविद्यायाः प्रेमी, परोपकारपरायणः च अस्ति।

चारुदत्तः पूर्वं धनवान् आसीत् परं सः उदारतावशदानकारणात् च शीघ्रं दरिद्रो जातः। दरिद्रावस्थायां मित्राणाम् उपेक्षायाः कारणात् कटुः अनुभवः भवति। किन्तु दैन्येऽपि तस्य मनः भ्रष्टं न भवति। मैत्रेयः अस्य मित्रम्। सः विनोदप्रियः विपत्तौ अपि तस्य विश्वासपात्रम्।

संस्कृत साहित्य में महाकवि कालिदास से भी पहले एक नाटककार हुए हैं। उनका उल्लेख कालिदास ने भी अपने एक नाटक में किया है। उनका नाम है-महाकवि भास। उनके तेरह नाटक मिलते हैं। उन नाटकों में बड़ी विविधता है। कथानक बड़े रोचक हैं। भाषा बहुत चुस्त है। नायक आदर्श चरित्र वाले हैं। इन नाटकों में एक का नाम है ‘चारुदत्तम्’। ‘चारुदत्तम्’ नाटक का नायक चारुदत्त है। पहले वह बड़ा धनवान् था। अपनी दानशीलता तथा उदारता के कारण वह शीघ्र ही दरिद्र हो जाता है। दरिद्रावस्था में उसके मित्र उसके पास नहीं फटकते, इस बात का उसको बड़ा कटु अनुभव होता है। ऐसा होने पर भी उसका मन डाँवाँडोल नहीं होता। दरिद्रता में भी उसका मन पूर्ववत् दृढ़ एवं उदार बना रहता है। यही दिखाने के लिए इस नाट्यांश को यहाँ प्रस्तुत किया गया है।

पाठ-संदर्भ

प्रस्तुत नाट्यांश का सङ्कलन महाकवि भासकृत ‘चारुदत्तम्’ नाम के नाटक के प्रथम अङ्क से किया गया है। कुछ भाग प्रस्तावना का भी है जिसमें सूत्रधार व नटी परस्पर संवाद द्वारा हमें चारुदत्त के मित्र आर्य मैत्रेय से परिचित कराते हैं। वह अपने मित्र चारुदत्त की पूजा के निमित्त कुछ पुष्प एवं वस्त्र लेकर आता है।

पाठ-सार

इस लघु नाट्यांश में भी तीन दृश्य हैं। प्रथम दृश्य में सूत्रधार अपने प्रातराश (नाश्ते) के हेतु नटी से पूछता है। विनोद करती हुई नटी कहती है कि प्रातराश की सामग्री घी, गुड़, दही, चावल घर पर नहीं हैं, उन्हें बाजार से लाना है। बाद में वह बताती है कि आज उसका व्रत है तथा किसी योग्य को निमन्त्रित भी करना है। सूत्रधार देखता है कि सामने से आर्य चारुदत्त के मित्र आर्य मैत्रेय पधार रहे हैं अतः वह उन्हीं को निमन्त्रित करने का विचार कर उन्हें निमन्त्रित कर देता है। नेपथ्य से ही मैत्रेय कहता है कि किसी दरिद्र व्यक्ति को निमन्त्रित कर लें। वह दरिद्र नहीं है

दूसरे दृश्य के प्रारंभ में विदूषक अपने-आप से ही बात करता है। यह उसका ‘आकाशभाषित’ है। वह सुनता है कि जैसे कोई कह रहा है कि भरपूर भोजन खाने को मिलेगा। इस पर वह कहता है कि वह दूसरे कार्य में व्यस्त है। वह सोचता है कि क्या उसे भी दूसरों के निमन्त्रण की इच्छा रहती है। जो आर्य चारुदत्त के घर में गले तक भरपूर भोजन करके अपने दिन व्यतीत करता था, वही अब घर-घर जाकर, चारुदत्त की दरिद्रता के कारण कबूतरों की तरह दूसरी जगह भोजन करता है। वह कहीं और भोजन करके अब चारुदत्त के घर जा रहा है। ऐसी अवस्था में भी वह कहता है कि मैं सन्तुष्ट हूँ। मैं चारुदत्त के लिए पुष्प तथा अन्तरीय वस्त्र लेकर आया हूँ। चारुदत्त को सामने से आते देखता है तथा वह उनके पास जाता है।

तीसरा दृश्य उस नाट्यांश का प्राण है। इसमें चारुदत्त तथा विदूषक का संवाद है। चारुदत्त दरिद्रता को प्राणवान् मरण (जीवित मृत्यु) ही मानता है। विदूषक उसे सान्त्वना देता है कि दरिद्र होते हुए भी आपका दरिद्र भाव दानशीलता के कारण रमणीय (सुन्दर) है। चारुदत्त कहता है कि उसे नष्ट हुई लक्ष्मी की चिन्ता नहीं है। गुणों के रसिक पुरुष की विपत्ति मुझे अत्यन्त दारुण तथा असहनीय इसलिए प्रतीत होती है कि दुःखों का अनुभव कर चुकने के बाद तो सुख की अनुभूति आनन्दमय होती है किन्तु जो उसके विपरीत पहले सुख भोगता है और बाद में दु:ख, उसे तो देह में स्थित होते हुए भी मरे हुए के समान जीवनयापन करना पड़ता है। विदूषक कहता है कि आप धन-सम्पत्तियों की चिन्ता क्यों कर रहे हैं।

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