प्रश्न 3.
जीवन निर्वाह कृषि एवं वाणिज्यिक कृषि में अन्तरे स्पष्ट कीजिए।
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जीवन निर्वाह कृषि -
जिस प्रकार की खेती से केवल इतनी उपज होती हो कि उससे परिवार का पेट भर सके तो उसे प्रारंभिक जीविका निर्वाह कृषि कहते हैं। इस तरह की खेती जमीन के छोटे टुकड़ों पर होती है। इस तरह की खेती में आदिम औजार और परिवार या समुदाय के श्रम का इस्तेमाल किया जाता है। यह खेती मुख्य रूप से मानसून पर और जमीन की प्राकृतिक उर्वरता पर निर्भर करती है। किसी विशेष स्थान की जलवायु को देखते हुए ही किसी फसल का चुनाव किया जाता है।
इसे ‘कर्तन दहन खेती’ भी कहते हैं। इसके लिए जमीन के किसी टुकड़े की वनस्पति को पहले काटा जाता है और फिर उन्हें जला दिया जाता है। उससे मिलने वाली राख को मिट्टी में मिला दिया जाता है और फिर उस पर फसल उगाई जाती है।
वाणिज्यिक कृषि-
इस प्रकार की खेती का मुख्य उद्देश्य है पैदावार की बिक्री करना। इस तरह की खेती में खेती के आधुनिक साजो सामान लगते हैं, जैसे कि अधिक पैदावार देने वाले बीज, रासायनिक उर्वरक, कीटनाशक और खरपतवारनाशक। पंजाब, हरियाणा, पश्चिमी उत्तर प्रदेश और महाराष्ट्र के कुछ भागों में बड़े पैमाने पर वाणिज्यिक खेती होती है। कुछ अन्य राज्यों में भी इस प्रकार की खेती होती है, जैसे कि बिहार, पश्चिम बंगाल, तमिल नाडु, आदि।
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