Music, asked by prakashkumarparjapat, 1 month ago

प्रश्न 3. निम्नलिखित गद्यांश की सप्रसंग व्याख्या कीजिए-
पृथ्वी के उच्छवास के समान उठते हुए धुंधलेपन में वे कच्चे पर आकंठ-मग्न हो गए थे - केवल फूस के
मटमैले और खपरैल के कत्थई और काले छप्पर, वर्षा में बढ़ी गंगा के मिट्टी जैसे जल में पुरानी नावों के
समान जान पड़ते थे। कछार की बालू में दूर तक फैले तरबूज और खरबूजे के खेत अपनी सिर की और
फूस के मुठ्ठियों, टट्टियों और रखवाली के लिए बनी पर्णकुटियों के कारण जल में बसे किसी आदिम द्वीप
का स्मरण दिलाते थे। उनमें एक-दो दीए जल चुके थे , तब मैंने दूर पर एक छोटा-सा काला धब्बा आगे
बढ़ता देखा। वह घीसा ही होगा, यह मैंने दूर से ही जान लिया। आज गुरु साहब को उसे विदा देना है, यह
उसका नन्हा हृदय अपनी पूरी संवेदना-शक्ति से जान रहा था इसमें संदेह नहीं था। परन्तु उस उपेक्षित
बालक के मन में मेरे लिए कितनी सरल ममता और मेरे बिछोह की कितनी गहरी व्यथा हो सकती है, यह
जानना मेरे लिए शेष था।​

Answers

Answered by komveer493
1

happy story

Explanation:

this story is very helpful

Answered by ridmal4121
1

निम्नलिखित गद्यांश की सप्रसंग व्याख्या कीजिए-

पृथ्वी के उच्छवास के समान उठते हुए धुंधलेपन में वे कच्चे पर आकंठ-मग्न हो गए थे - केवल फूस के

मटमैले और खपरैल के कत्थई और काले छप्पर, वर्षा में बढ़ी गंगा के मिट्टी जैसे जल में पुरानी नावों के

समान जान पड़ते थे। कछार की बालू में दूर तक फैले तरबूज और खरबूजे के खेत अपनी सिर की और

फूस के मुठ्ठियों, टट्टियों और रखवाली के लिए बनी पर्णकुटियों के कारण जल में बसे किसी आदिम द्वीप

का स्मरण दिलाते थे। उनमें एक-दो दीए जल चुके थे , तब मैंने दूर पर एक छोटा-सा काला धब्बा आगे

बढ़ता देखा। वह घीसा ही होगा, यह मैंने दूर से ही जान लिया। आज गुरु साहब को उसे विदा देना है, यह

उसका नन्हा हृदय अपनी पूरी संवेदना-शक्ति से जान रहा था इसमें संदेह नहीं था। परन्तु उस उपेक्षित

बालक के मन में मेरे लिए कितनी सरल ममता और मेरे बिछोह की कितनी गहरी व्यथा हो सकती है, यह

जानना

Attachments:
Similar questions