प्रश्न-4 अधोलिखित पाठांश को पढ़कर दिए गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए
बालगोबिन भगत खेती बारी करते हैं, परिवार रखते हुए भी, साधु थे-साधु की सब परिभाषाओं में खरे
उतरने वाले। कबीर को 'साहब' मानते थे, उन्हीं के गीतों को गाते, उन्हीं के आदर्शों पर चलते। कमी झूठ
नहीं बोलते, खरा व्यवहार रखते। किसी से भी दो-टूक बात करने में संकोच नहीं करते, न किसी से
खामखाह झगड़ा मोल लेते। किसी की चीज नहीं छूते, न बिना पूछे व्यवहार में लाते। इस नियम को
कभी-कभी इतनी बारीकी तक ले जाते कि लोगों को कुतूहल होता! – कभी वह दूसरे के खेत में शौच के
लिए भी नहीं बैठते! वह गृहस्थ थे। लेकिन उनकी सब चीज 'साहब' की थी। जो कुछ खेत में पैदा होता,
सिर पर लादकर पहले उसे साहब के दरबार में ले जाते- जो उनके घर से चार कोस दूर पर था- एक
कबीरपंथी मठ से मतलब! वह दरबार में भेंट रूप रख लिया जाता 'प्रसाद के रूप में जो उन्हें मिलता,
उसे घर लाते और उसी से
गुजर
चलाते!
बेटे के क्रिया- कर्म में तूल नहीं किया पतोहू से ही आग दिलाई उसकी। किंतु ज्योंही श्राद्ध की
अवधि पूरी हो गई, पतोहू के भाई को बुलाकर उसके साथ कर दिया, यह आदेश देते हुए कि इसकी दूसरी
शादी कर देना। इधर पतोहू रो-रो कर कहती- मैं चली जाऊँगी तो बुढ़ापे में कौन आपके लिए भोजन
बनाएगा, बीमार पड़े, तो कौन एक चुल्लू पानी भी देगा? मैं पैर पड़ती हूँ , मुझे अपने चरणों से अलग नहीं
कीजिए! लेकिन भगत का निर्णय अटल था ।तू जा, नहीं तो मैं ही इस घर को छोड़कर चल दूंगा- यह थी
उनकी आखिरी दलील और इस दलील के आगे बेचारी की क्या चलती ?
(क) बालगोबिन भगत एक गृहस्थ व्यक्ति थे फिर भी उन्हें साधु की संज्ञा दी गई है, क्यों?
विस्तार से स्पष्ट कीजिए?
(ख) बालगोबिन भगत खेत की पैदावार कहाँ ले जाते थे और क्यों?
(ग) बालगोबिन भगत ने समाज के प्रचलित नियम के विरुद्ध क्या काम किया?
(घ) बालगोबिन भगत ने अपनी पतोहू को उसके भाई के साथ भेजने का निर्णय इतना शीघ्र क्यों लिया,
आप भगत के निर्णय से कहाँ तक सहमत हैं? विचार प्रस्तुत कीजिए।
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samajh mein nahin aaya
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