प्रश्न 4. अधोलिखित पठित पद्यस्य हिन्दी भाषया अनुवादं लिखत- पिचन्ति नद्यः स्वयमेव नाम्भ: स्वयं न खादन्ति फलानि वृक्षाः । नादन्ति सस्यं खलु वारिवाहाः । परोपकारास्य सतां विभूतयः ।।
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नदियां अपना जाल स्वयं ही नहीं पीती न ही वृक्ष स्वयं अपना फल खाते हैं निश्चीत ही बादल अनाजों को नहीं खाते महापुरुषों का जीवन परोपकार का होता है।
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