प्रश्न 4 लेखक नारी और नर के बीच कैसा संबंध मानता है?
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भारतीय संस्कृति में नारी का उल्लेख जगत्-जननी आदि शक्ति-स्वरूपा के रूप में किया गया है। श्रुतियों, स्मृतियों और पुराणों में नारी को विशेष स्थान मिला है। मनु स्मृति में कहा गया
है-
यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता:।
यत्रेतास्तु न पूज्यन्ते सर्वास्तफला: क्रिया।।
जहाँ नारी का समादर होता है वहाँ देवता प्रसन्न रहते हैं और जहाँ ऐसा नहीं है वहाँ समस्त यज्ञादि क्रियाएं व्यर्थ होती हैं। नारी की महत्ता का वर्णन करते हुये ”महर्षि गर्ग” कहते
हैं-
यद् गृहे रमते नारी लक्ष्मीस्तद् गृहवासिनी।
देवता: कोटिशो वत्स! न त्यजन्ति गृहं हितत्।।
जिस घर में सद्गुण सम्पन्न नारी सुख पूर्वक निवास करती है उस घर में लक्ष्मी जी निवास करती हैं। हे वत्स! करोड़ों देवता भी उस घर को नहीं छोड़ते।
ज्ञान-ऐश्वर्य-शौर्य की प्रतीक
भारत में सदैव नारी को उच्च स्थान दिया गया है। समुत्कर्ष और नि.श्रेयस के लिए आधारभूत ‘श्री’, ‘ज्ञान’ तथा ‘शौर्य’ की अधिष्ठात्री नारी रूपों में प्रगट देवियों को ही माना गया है। आदिकाल से ही हमारे देश में नारी की पूजा होती आ रही है। यहाँ ‘अर्द्धनारीश्वर’ का आदर्श रहा है। आज भी आदर्श भारतीय नारी में तीनों देवियाँ विद्यमान हैं। अपनी संतान को संस्कार देते समय उसका ‘सरस्वती’ रूप सामने आता है। गृह प्रबन्धन की कुशलता में ‘लक्ष्मी’ का रूप तथा दुष्टों के अन्याय का प्रतिकार करते समय ‘दुर्गा’ का रूप प्रगट हो जाता है। अत. किसी भी मंगलकार्य को नारी की अनुपस्थिति में अपूर्ण माना गया। पुरुष यज्ञ करें, दान करे, राजसिंहासन पर बैठें या अन्य कोई श्रेष्ठ कर्म करे तो ‘पत्नी’ का साथ होना अनिवार्य माना गया।
वेदों के अनुसार सृष्टि के विधि-विधान में नारी सृष्टिकर्ता ‘श्रीनारायण’ की ओर से मूल्यवान व दुर्लभ उपहार है। नारी ‘माँ’ के रूप में ही हमें इस संसार का साक्षात दिग्दर्शन कराती है, जिसके शुभ आशीर्वाद से जीवन की सफलता फलीभूत होती है। माँ तो प्रेम, भक्ति तथा श्रध्दा की आराध्य देवी है। तीनों लोकों में ‘माता’ के रूप में नारी की महत्ता प्रकट की गई है। जिसके कदमों तले स्वर्ग है, जिसके हृदय में कोमलता, पवित्रता, शीतलता, शाश्वत वाणी की शौर्य-सत्ता और वात्सल्य जैसे अनेक उत्कट गुणों का समावेश है, जिसकी मुस्कान में सृजन रूपी शक्ति है तथा जो हमें सन्मार्ग के चरमोत्कर्ष शिखर तक पहुँचने हेतु उत्प्रेरित करती है, उसे ”मातृदेवो भव” कहा गया है।
नारी का सम्मान
हिन्दू धर्म की स्मृतियों में यह नियम बनाया गया कि यदि स्त्री रुग्ण व्यक्ति या बोझा लिए कोई व्यक्ति आये तो उसे पहले मार्ग देना चाहिये। नारी के प्रति किसी भी तरह का असम्मान गंभीर अपराध की श्रेणी में रखा गया। नारी यदि शत्रु पक्ष की भी है तो उसको पूरा सम्मान देने की परम्परा बनाई। गोस्वामी तुलसीदास जी ने ‘रामचरित मानस’ में लिखा है कि भगवान श्री राम बालि से कहते हैं-