World Languages, asked by sourabhsinghlodhi330, 6 months ago

प्रश्न 4. सही जोड़याँ बनाईये.
0) भारत की औसत वार्षक वर्षा
C) निम्न वायुदाब पेटी
(1) शीतकालीन वर्षा
0) काल बैसाखी
0) जलोढ़ मृदा​

Answers

Answered by nainshusharma18129
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Answer:

-राज एक्सप्रेसछत्तीसगढ़ न्यूज/ देश में सतही और उप-सतही स्रोतों से जल की उपलब्धता का समुचित मूल्यांकन उचित आयोजना, विकास और प्रबंधन का आधार है। जल संसाधनों की आयोजना, विकास और प्रबंधन को बहु-क्षेत्रीय, बहु-विभागीय और भागीदारीपूर्ण दृष्टिकोण के साथ ही राष्ट्रीय जल नीति, 2002 के अनुसार समन्वित गुणवत्ता, संख्या और पर्यावरण संबंधी पहलुओं पर आधारित एक जलविज्ञान इकाई के आधार पर किया जाना चाहिए। तदनुसार, नदी घाटी पर आधारित जल संसाधन मूल्यांकन किया जा रहा है।

वर्षा और बर्फवारी के रूप में अवक्षेपण जल विज्ञान चक्र का एक प्रमुख घटक है, जो नवीकरण के आधार पर स्वच्छ जल उपलब्ध कराता है। भारत का भौगोलिक क्षेत्रफल 32.90 करोड़ हैक्टेयर है और देश में औसत वार्षिक वर्षा 1170 मिमी है, जो लगभग 4000 घन किलोमीटर का वार्षिक अवक्षेपण प्रदान करती है। इस अवक्षेपण का एक प्रमुख भाग धरातल में रिसता है और शेष भाग धाराओं और नदियों के माध्यम से प्रवाहित होता है तथा जल निकायों द्वारा संग्रहित होता है जिससे सतही प्रवाह बढता है। धरातल में रिसने वाले जल का हिस्सा ऊपरी तह में मिट्टी की नदी के रूप में रहता है और शेष भाग भू-भाग संसाधनों को बढाता है। इसके बाद सतही प्रवाहों और मिट्टी की नमी तथा भू-जल संसाधनों का एक प्रमुख भाग का जब विभिन्न रूपों में इस्तेमाल होता है तो वह वाष्पीकरण के माध्यम से वायुमंडल में वापस लौट जाता है ।नदी घाटी में प्राकृतिक प्रवाह को एक घाटी के जल संसाधनों के रूप में माना जाता है। सामान्य रूप से घाटी का औसत प्रवाह टर्मिनल के स्थान पर औसत वार्षिक प्रवाह से यथानुपात आधार पर प्राप्त किया जाता है। हालांकि किसी समय में नदी घाटी में जल संसाधनों का विकास हुआ है और कुछ हद तक बड़े और मझौले भंडारण बांधों के निर्माण और पनबिजली, सिंचाई और अन्य जलापूर्ति प्रणालियों के विकास के माध्यम से इस्तेमाल में लाया गया। इनसे जुड़ी कई परियोजनाओं और पंपघर संबंधी परियोजनाओं पर भी काम चल रहा है। इसलिए प्राकृतिक प्रवाह का मूल्यांकन ऊपरी धारा के इस्तेमाल, जलाशय भंडारों, पुनर्सृजित प्रवाहों और वापसी प्रवाहों की दृष्टि से एक जटिल कार्य बन गया है ।

केन्द्रीय जल आयोग ने वर्ष 1993 में औसत वार्षिक जल क्षमता संसाधनों का मूल्यांकन 1869 अरब घन मीटर के रूप में किया था, जो उपरोक्त प्रक्रिया पर आधारित था और उसने भारत में जल संसाधन क्षमता का पुनर्मूल्यांकन नामक एक रिपोर्ट भी दी। समन्वित जल संसाधन विकास योजना पर बने राष्ट्रीय आयोग (एनसीआईडब्ल्यूआरडीपी, 1999) का अनुमान थोड़ा सा भिन्न था, जिसमें यह कारण बताया गया था कि ब्रह्मपुत्र उप-घाटी के मामले में जोधीघोपा स्थान पर ब्रह्मपुत्र की निचली धारा को जोड़ने वाली नौ सहायक नदियों के प्रवाह के अतिरिक्त योगदान के कारण और दूसरी ओर, कृष्णा घाटी के मामले में अनुमान कृष्णा जल विवाद ट्रिब्यूनल द्वारा मान्य बंटवारे के परिणामस्वरूप औसत प्रवाह पर आधारित था ।

जल संसाधन मंत्रालय द्वारा देश में विविध इस्तेमालों के लिए जल की उपलब्धता और जरूरत के मूल्यांकन के लिए गठित स्थायी उप-समिति ने अपनी रिपोर्ट में पाया कि केन्द्रीय जल आयोग द्वारा अद्यतन मूल्यांकन में इसे 1869 अरब घन मीटर है, जिसे विश्वसनीय माना जा रहा है

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