प्रश्न 40. मध्यकालीन इतिहास के चार प्रमुख साहित्यिक स्रोतों के नाम लिखें।
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मध्यकाल मे भारतीय इतिहास की जानकारी देने वाले स्रोतों का अध्ययन करने पर इतिहासकारो का कहना है, कि उस समय अधिकतर इतिहास के लेखक युगीन सम्राटों के दरबारी अथवा कृपापात्र थे। इसलिए उनके लिखे इतिहास मे उस समय की एकपक्षीय तस्वीर प्रस्तुत करता है। अर्थात सम्राटों के गुण गान पर अधिक महत्व दिया गया है , चूँकि मध्ययुगीन अधिकांश इतिहासकार उच्च वर्ग से थे, इसलिए उन्होंने शासक वर्ग से सम्बन्धों में विशेष रुचि ली। उनके द्वारा लिखे गयी पुस्तके , जिनसे हम मध्यकालीन भारतीय इतिहास की कुछ जानकारी हासिल होती है
अकबरनामा -
इस ग्रन्थ की रचना अरबी तथा फारसी के विद्वान् अबुल फजल ने की थी। इस विशाल ग्रन्थ को दो भागों में बाँटा जा सकता है-प्रथम भाग में अकबर के जन्म, तैमूरियों की वंशावली तथा बाबर-हुमायूँ का विवरण हैं। द्वितीय भाग में अकबर के राज्यारोहण से 17वें वर्ष तक का विवरण है। यह ग्रन्थ 1596 ई. में पूरा हुआ। अबुल फजल अकबर का घनिष्ठ मित्र और परामर्शदाता भी था। उसने अकबर के प्रशासन, विजयों, नीतियों आदि का विस्तृत विवरण दिया है। सबसे महत्त्वपूर्ण तथ्य यह है कि उसे अकबर की आध्यात्मिक शक्ति तथा बौद्धिक ज्ञान में अपरिमित विश्वास था। अत: उसका वर्णन व्यक्ति पूजा के समान है ,
- आइन-ए-अकबरी - इस ग्रन्थ की रचना भी अबुल फजल ने की थी। वास्तव में यह ग्रन्थ अकबरनामा' का तीसरा भाग है। इसके पाँच भाग हैं। प्रत्येक भाग में राज्य के नियमों का विवरण दिया गया है। प्रथम भाग में 10, द्वितीय भाग में 30 तथा तृतीय भाग में 16 नियम हैं। चतुर्थ भाग में हिन्दुस्तान की फसलों, ऋतुओं आदि का वर्णन है। इसके अतिरिक्त हिन्दुओं के दर्शन, साहित्य आदि का भी विवरण है। साथ में सन्तों व सूफियों का विवरण भी है। पंचम भाग में अकबर को कहावतें तथा अबुल फजल की आत्मकथा है। प्रशासन के स्रोत के रूप में यह रचना मध्य काल की अनुपम कृति है।
- मुन्तखब-उल-तवारीख - इस ग्रन्थ के लेखक अब्दुल कादिर बदायूँनी हैं। वह अकबर का दरबारी था। अकबर ने उसे इमाम नियुक्त किया था। सम्राट पर अबुल फजल का अधिक प्रभाव होने के कारण बदायूँनी का महत्त्व कम हो गया था। बदायूँनी कट्टर रूढ़िवादी सुन्नी मुसलमान था। उसने अकबर की उदारवादी नीति की कड़ी निन्दा की है। उसने इस ग्रन्थ की रचना गुप्त रूप से की थी, जिससे अकबर के काल में इस ग्रन्थ के बारे में लोगों को मालूम नहीं था।
- तबकात-ए-अकबरी — इस ग्रन्थ का लेखक निजामुद्दीन अहमद था, जो अकबर का मीरबख्शी था। उसका पिता बाबर और हुमायूँ के काल में उच्च पदों पर रहा था। उसे अकबर के शासनकाल की घटनाओं का ज्ञान था। अत: उसका ग्रन्थ इस काल का महत्त्वपूर्ण ऐतिहासिक स्रोत है। निजामुद्दीन ने 997 ई. से 1593 ई. तक का इतिहास प्रस्तुत किया है, लेकिन इसका महत्त्व मुगल काल के इतिहास के लिए है। एक महत्त्वपूर्ण बात यह भी है कि निजामुद्दीन ने प्रान्तीय मुस्लिम राज्यों का वर्णन किया है। इससे इस ग्रन्थ का महत्त्व बढ़ जाता है। इसमें अब्दुल फजल की तरह अलंकारप्रियता तथा प्रशंसा और बदायूँनी की तरह धार्मिक कट्टरता नहीं है।
- तुजुक-ए-जहाँगीरी - यह ग्रन्थ जहाँगीर की आत्मकथा है। जहाँगीर ने अपने 12 वर्षों के शासनकाल का वर्णन स्वयं लिखा है। ऐसा प्रतीत होता है कि शेष 7 वर्षों का वर्णन मोअतमिद खाँ ने लिखा। वह जहाँगीर का मीरबख्शी था। इसका कारण सम्भवतः जहाँगीर का खराब स्वास्थ्य था। इसमें जहाँगीर के अभियानों का विस्तृत वर्णन प्राप्त होता है। इसमें इस काल के विद्रोहों का भी वर्णन किया गया है। जहाँगीर ने दरबार के उत्सवों का वर्णन किया है। उसने प्रकृति, पशु-पक्षियों आदि का भी वर्णन किया है, लेकिन उसने खुसरो, परवेज, शहरयार, नूरजहाँ के साथ विवाह आदि घटनाओं को वर्णन संक्षेप में किया है।