प्रश्न-5 निम्न पंक्तियों का भावार्थ स्पष्ट करें (I) विहाय पौरुषं यो हि देवमेवाबलम्बते । (|) वने अत्र संस्थस्य समागता जरा ,बिलस्य वाणी न कदापि मे श्रुता। (III) तद्दिनम् नातिदूरम् यदा वयम् हस्ते एकमात्रं चल दूरभाष यत्रं सर्वाणि कार्याणि साधयितुम् समर्था : भविष्यामः ।
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निम्न पंक्तियों का भावार्थ स्पष्ट करें...
(I) विहाय पौरुषं यो हि देवमेवाबलम्बते ।
भावार्थ : जो व्यक्ति अपने पुरुषार्थ को छोड़कर भाग्य का सहारा लेता है। वह उसी तरह होता है, जैसे महल के द्वार पर बने नकली सिंह के सिर पर बैठा कौआ।
कहने का भावार्थ है कि व्यक्ति को अपने भाग्य पर नहीं बल्कि कर्म पर निर्भर होना चाहिए और अपने पुरुषार्थ के बल पर अपने कार्य की सिद्धि करनी चाहिए।
(|) वने अत्र संस्थस्य समागता जरा, बिलस्य वाणी न कदापि मे श्रुता।
भावार्थ : जो अपने आने वाले कल या आने वाली किसी भी विपत्ति का पहले से उपाय करके रखता है, वह संसार में शोभा पाता है। जो आने वाले संकट के निराकरण का उपाय नहीं करता, वह संकट में फंस जाता है। जैसे यहां वन में रहते हुए मेरा बुढ़ापा आ गया लेकिन मैंने कभी भी अपने बिल की की आवाज नही सुनी।
(III) तद्दिनम् नातिदूरम् यदा वयम् हस्ते एकमात्रं चल दूरभाष यत्रं सर्वाणि कार्याणि साधयितुम् समर्था : भविष्यामः।
भावार्थ : एक समय ऐसा आएगा और वह दिन दूर नहीं होगा, जब हाथ में केवल एक दूरभाष यंत्र यानी मोबाइल फोन लेकर ही मनुष्य सारे कार्य करने में समर्थ होंगे। इस यंत्र की माध्यम से ही सारे कार्य करने में सक्षम होंगे।
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