प्रश्न 5. निम्नलिखित पद्यांशकी सप्रसंग व्याख्या क
"बसो मेरे नैनन में नंदलाल,
मोहनी मूरति, साँवरी सूरति, नैणा बने बिसाल
अधर सुधारस मुरली राजति उर वैजन्ती माल
छुद्रघंटिका कटितट सोभित नुपूर सबद रसाल।
मीरा के प्रभु संतन सुखदाई, भक्त बछल गोपाल।"
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Answer:
1. बसो मेरे नैनन में ….…………………………………….. भक्त बछल गोपाल।
शब्दार्थ- मकराकृत = मछली के आकार के। छुद्र = छोटी। रसाल = मधुर । भक्त-बछल = भक्त-वत्सल।
सन्दर्भ- प्रस्तुत पद्य हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘हिन्दी काव्य’ में संकलित श्रीकृष्ण की अनन्य उपासिका मीराबाई के काव्य-ग्रन्थ ‘मीरा-सुधा-सिन्धु’ के अन्तर्गत ‘पदावली’ शीर्षक से अवतरित है।
प्रसंग- प्रेम-दीवानी मीरा भगवान् कृष्ण की मोहिनी मूर्ति को अपने नेत्रों में बसाना चाहती हैं। इस पद में कृष्ण की मोहिनी मूर्ति का सजीव चित्रण है।
व्याख्या- कृष्ण के प्रेम में दीवानी मीरा कहती हैं कि नन्दजी को आनन्दित करनेवाले हे श्रीकृष्ण! आप मेरे नेत्रों में निवास कीजिए। आपका सौन्दर्य अत्यन्त आकर्षक है। आपके सिर पर मोर के पंखों में निर्मित मुकुट एवं कानों में ऊली की आकृति के कुण्डल सुशोभित हो रहे हैं। मस्तक पर लगे हुए लाल तिलक और सुन्दर विशाल नेत्रों से आपका श्यामवर्ण का शरीर अतीव सुशोभित हो रहा है। अमृतरस से भरे आपके सुन्दर होंठों पर बाँसुरी शोभायमान हो रही है । आप हृदय पर वन के पत्र-पुष्पों से निर्मित माला धारण किये हुए हैं। आपकी कमर में बँधी करधनी में छोटी-छोटी घण्टियाँ सुशोभित हो रही हैं। आपके चरणों में बँधे हुँघरुओं की मधुर ध्वनि बहुत रसीली प्रतीत होती है । हे प्रभु! आप सज्जनों को सुख देनेवाले, भक्तों से प्यार करनेवाले और अनुपम सुन्दर हैं। आप मेरे नेत्रों में बस जाओ।
Explanation:
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Answer:
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