प्रश्न 5) पठित पदों के आधार पर मीरा की भक्ति भावना पर प्रकाश डालिए | आपको मीरा के पदों से क्या प्रेरणा मिलती है | क्या मीरा के पद आज भी वर्तमान संदर्भ में प्रासंगिक है ? class 10
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मीरा की भक्ति भावना – मीरा में कृष्ण के प्रति भक्ति-भावना का बीजारोपण बाल्यकाल में ही हो गया था। अधिकांश विद्वानों की मान्यता है कि बचपन में किसी साधु ने मीरा को कृष्ण की मूर्ति दी थी और विवाह के बाद वह उस मूर्ति को चित्तौङ ले गयी। जयमल-वंश प्रकाश में कहा गया है कि विवाह होने पर मीरा अपने विद्या गुरु पंडित गजाधर को भी अपने साथ चित्तौङ ले आयी थी। दुर्ग में मुरलीधर जी का मंदिर बनवा कर पूजा आदि का समस्त दायित्व पंडित गजाधर को सौंप दिया। इस कार्य के लिये गजाधर को मांडल व पुर में 2,000 बीघा जमीन प्रदान की जो अद्यावधि उसके वंशजों के पास है। चित्तौङ में वह कृष्ण की पूजा-अर्चना करती रही। किन्तु विधवा होने के बाद तो उस पर विपत्तियों का पहाङ टूट पङा, जिससे उसका मन वैराग्य की ओर उन्मुख हो गया और उसका अधिकांश समय भगवद्-भक्ति और साधु संगति में व्यतीत होने लगा। मीरा का साधु संतों में बैठना विक्रमादित्य को उचित नहीं लगा। अतः उसने मीरा को भक्ति मार्ग से विमुख कर महल की चहारदीवारी में बंद करने हेतु अनेक कष्ट दिये। ज्यों-ज्यों मीरा को कष्ट दिये गये, त्यों-त्यों उसका लौकिक जीवन से मोह घटता गया और कृष्ण भक्ति के प्रति निष्ठा बढती गयी। चित्तौङ के प्रतिकूल वातावरण को छोङकर वह मेङता आ गयी और कृष्ण भक्ति व साधु संतों की सेवा में लग गयी। मीरा ने अपना शेष जीवन वृंदावन और द्वारिका में भजन कीर्तन और साधु संगति में बिताया। इस प्रकार मीरा की कृष्ण भक्ति निरंतर दृढ होती गयी तथा वृंदावन व द्वारिका पहुँचने तक तो वह कृष्ण को अपने पति के रूप में स्वीकार कर अमर सुहागिन बन गयी।
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मीरा की भक्ति भावना – मीरा में कृष्ण के प्रति भक्ति-भावना का बीजारोपण बाल्यकाल में ही हो गया था। ... अतः उसने मीरा को भक्ति मार्ग से विमुख कर महल की चहारदीवारी में बंद करने हेतु अनेक कष्ट दिये। ज्यों-ज्यों मीरा को कष्ट दिये गये, त्यों-त्यों उसका लौकिक जीवन से मोह घटता गया और कृष्ण भक्ति के प्रति निष्ठा बढती गयी।