प्रश्न-5 'तपते देखा - गलते देखा' में गलने का क्या आशय है?
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Tapte dekha galte dekha me galte ka keya aasay hai
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'तपते देखा- गलते देखा' में गलने का क्या आशय है ?
‘वीरांगना’ कविता में कवि द्वारा ‘तपते देखा, गलते देखा’ पंक्ति में गलने से कवि का आशय उस बात से है कि जिस तरह लोहे को तपाकर गलाकर नए सांचे में ढाला जाता है। यह एक प्रक्रिया होती है, उसी तरह नारी भी तप गलकर अनेक रूपों में ढलती है। नारी जीवन में अनेक तरह के कष्ट-संताप-दुख आदि को सहती है दुखों की आग में तप कर गल कर नए नवीन स्वरूप में ढल कर सामने आती है।
नारी आवश्यकता पड़ने पर अपने परिवार की रक्षा के लिये, अपने आत्मसम्मान की रक्षा के लिए आक्रामक भी हो सकती है और अपने अस्तित्व की सुरक्षा के लिए गोली के समान चल भी सकती है। कवि का आशय यह है कि नारी विभिन्न तरह की विषम परिस्थितियों में तपकर और गलकर ही वीरांगना बनती है।
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