प्रश्न.57 :- भगवान महावीर के जीव को सिंह की पर्याय में किन मुनिराजों ने उपदेश दिया था ?
संजयन्त और जयन्त
अजितंजय और अमितगुण
विजय और अचल
संजय और विजय
jain que
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Answer:
अजितजय और अमितगुण
Explanation:
नरक से आयु पूर्ण कर जंबूद्वीप में सिंहकूट के पूर्व की ओर हिमवान पर्वत के शिखर पर पुनः सिंह हुआ और एक दिन वह मृग का शिकार करके खा रहा था तभी करुणाधारी चारणरिद्धीधारी मुनि अजितञ्जय और अमितगुण नाम के मुनिराज निकले। सिंह को देखते ही उन्हें तीर्थंकर वचनों का स्मरण हो आया वे समवसरण में सुनकर आए थे की हिमकूट पर्वत पर सिंह दसवें भव में महावीर नाम का तीर्थंकर होगा। अजितञ्जय मुनिराज ने अपने अवधिज्ञान के द्वारा उसे झटसे पहचान लिया। उक्त दोनों मुनिराज आकाशसे उतर कर सिंहके सामने एक शिलापर ! बैठ गये। सिंह भी चुपचाप वहीं पर बैठा रहा। कुछ देर बाद अजितञ्जय मुनिराजने उस सिंहको सारगर्भित शब्दोंमें समझाया-'अय मृगराज ! तुम इस तरह प्रतिदिन निर्बल प्राणियोंको क्यों मारा करते हो ? इस पापके फलसे ही तुमने अनेक बार कुयोनियोंमें दुःख उठाये हैं'–इत्यादि कहते हुए उन्होंने उसके पहलेके समस्त भव कह सुनाये। मुनिराजके वचन सुन कर सिंहको भी जातिस्मरण हो गया जिससे उसकी आंखोंके सामने पहलेके समस्त भव प्रत्यक्ष झलकने लगे। उसे अपने दुष्कार्यों पर इतना अधिक पश्चाताप हुआ कि उसकी आंखोंसे आंसुओंकी धारा बह निकली। मुनिराजने फिर उसे शान्त करते हुए कहा-तुम आजसे अहिंसा व्रतका पालन करो। तुम इस भवसे दशवें भवमें जगत्पूज्य वर्द्धमान तीर्थंकर होगे। मुनिराजके उपदेशसे वनराज सिंहने सन्यास धारण किया और विशुद्ध-चित्त होकर आत्म-ध्यान किया। जिससे वह मर कर सौधर्म स्वर्गमें सिंहकेतु नामका देव हुआ। मुनि-युगल भा अपना कर्तव्य पूरा कर आकाश मार्गसे विहार कर गये।