प्रश्न 7. 'बस की यात्रा' पाठ को पढ़ने के बाद आपको कभी अपने जीवन में की गई किसी यात्रा की बात
मन में आयी होगी। याद करको उन यात्रा-वृत्तांत को अपने शब्दों में लिखिए।
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Answer:
एक दिन मैं जब अपनी दादी जी के घर जोधपुर में था तो वहाँ मेरे पिताजी ने मुझसे कहा कि वह मुझे जोधपुर के ऐतिहासिक स्थानों पर घूमाने ले जाएंगे । अगले दिन मैं जल्दी से तैयार हो गया और मैं और मेरे पिताजी दोनों चल दिए। वह रविवार का दिन था। रविवार के दिन सड़कों पर चलने वाली बसों की संख्या कम थी। हमें जिस बस में जाना था वह अभी आई नहीं थी। मैं और पिताजी कम से कम दस मिनट बस स्टैंड पर खड़े रहे। उसके बाद हमारी बस आ गई। मैं और मेरे पिताजी बस में चढ़ गए क्योंकि मुझे टिकट लेने की कोई चिंता नहीं थी। अतः मैं बस के अन्दर एक खाली सीट पर बैठ गया तथा खिड़की के पास ही बैठा रहा। मेरे पिताजी ने हम दोनों की टिकटें ली जो कि दस रुपए की थी।
बस में काफी भीड़ थी परन्तु मुझे एक व्यक्ति ने बच्चा समझकर सीट दे दी थी। मेरे पिताजी वहीं मेरी सीट के पास खड़े हो गए। बस पूरी तरह से यात्रियों से भरी हुई थी। काफी सारे लोग बसों में खड़े थे। यात्रियों को चढ़ाकर बस चल पड़ी। तभी एक बूढा व्यक्ति चिल्लाने लगा कि पर्स चोरी हो गया। वह अभी चिल्ला ही रहा था कि इतने में ही पर्स चोरी करने वाला भागकर बस से कूद गया और तेजी से भागने लगा। बस में इतनी अधिक भीड़ थी कि छोटे बच्चे भीड़ की वजह से रो रहे थे। कुछ देर बाद बस के पहिए में कुछ खराबी आ गई जिसके कारण ड्राइवर को बस रोकनी पड़ी और सब यात्री परेशान होकर बस से नीचे उतरने लगे। ड्राइवर ने साफ मना कर दिया कि आगे बस नहीं चलेगी और सभी यात्री किसी दूसरी बस में चले जाएं। मैं और मेरे पिताजी भी बस से नीचे उतर गए। मेरे लिए बहुत बुरा अनुभव था। इसके बाद मैं और मेरे पिताजी हम दोनों अगली बस का इंतजार करने लगे।