प्रश्न 7. हिन्दी कहानी की विकास यात्रा पर प्रकाश डालिए।
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Explanation:
हिंदी कहानियों के विकास को वास्तविक पर लगे 1910 से 1960 के दशक के बीच। सन 1900 से 1915 तक के कालखंड को हिन्दी कहानी के विकास का प्रारंभिक चरण माना जा सकता है। इस दौर में कई लेखकों की कहानियाँ प्रकाशित हुई जिससे हिंदी कहानियों के आधुनिक विकास के बारे में पता चलता है।
प्रेमचंद के आगमन से हिन्दी का कथा-साहित्य की दिशा कुछ हद तक “आदर्शोन्मुख यथार्थवाद” की ओर मुड़ गई और “प्रसाद” के आगमन से “रोमांटिक यथार्थवाद” की ओर। सन 1922 में “उग्र” का हिन्दी-कथा-साहित्य में प्रवेश हुआ। उग्र न तो “प्रसाद” की तरह रोमैंटिक थे और न ही प्रेमचंद की भाँति आदर्शोन्मुख यथार्थवादी। वे केवल “यथार्थवादी” थे – प्रकृति से ही उन्होंने समाज के नंगे यथार्थ को सशक्त भाषा-शैली में उजागर किया। 1927 से 1928 आ आसपास जैनेन्द्र ने कहानी लिखना आरंभ किया। उनके आगमन के साथ ही हिन्दी-कहानी का नए युग आरम्भ हुआ। 1936 तक “प्रगतिशील लेखक संघ” की स्थापना हो चुकी थी। इस समय के लेखकों की रचनाओं में प्रगतिशीलता के तत्त्व का जो समावेश हुआ उसे युगधर्म समझना चाहिए। “यशपाल” राष्ट्रीय संग्राम के एक सक्रिय क्रांतिकारी कार्यकर्ता थे, अतः वह प्रभाव उनकी कहानियों में भी आया। “अज्ञेय” प्रयोगवादी कलाकार थे, उनके आगमन के साथ कहानी नई दिशा की ओर मुड़ी। जिस आधुनिकता बोध की आज बहुत चर्चा की जाती है उसका श्रेय अज्ञेय को ही जाता है। “अश्क” प्रेमचंद परंपरा के कहानीकार हैं। अश्क के अतिरिक्त वृंदावनलाल वर्मा, भगवतीचरण वर्मा, इलाचन्द्र जोशी, अमृतलाल नागर आदि उपन्यासकारों ने भी कहानियों के क्षेत्र में काम किया है। किन्तु इनका वास्तविक क्षेत्र उपन्यास है कहानी नहीं। इसके बाद सन 1950 के आसपास से हिन्दी कहानियाँ नए दौर से गुजरने लगीं। जिसमें आधुनिक विचारधारा की छाप नज़र आती है।