प्रश्न 8- (क) निलिखित काव्यना को पढ़कर प्रश्नी का उत्तर दीजिये-
हस्सी चढ़िये ज्ञान को, सहज दुलीचा डारि।
स्थान रूप संसार है , भूकन दे झख मारि ।।
पखा पखी के कारने ,सब जग रहा भुलान ।
निरपख होई के हरिभजै सोई संत सूजान ।।
1- पखा-पखी से कवि का क्या तात्पर्य है ?2
2- कवि ने संसार को स्थान के समान क्यों कहा है ?2
3- सब जग रहा भुलान का क्या अर्थ है ?1
शशता
Answers
निलिखित काव्यना को पढ़कर प्रश्नी का उत्तर दीजिये-
हस्सी चढ़िये ज्ञान को, सहज दुलीचा डारि।
स्थान रूप संसार है , भूकन दे झख मारि ।।
पखा पखी के कारने ,सब जग रहा भुलान ।
निरपख होई के हरिभजै सोई संत सूजान ।।
1- पखा-पखी से कवि का क्या तात्पर्य है ?
2- कवि ने संसार को स्थान के समान क्यों कहा है ?
3- सब जग रहा भुलान का क्या अर्थ है ?
❢ पखापखी का शाब्दिक अर्थ है पक्ष-विपक्ष अर्थात् मत और मतांतर का विभेद। कबीर का मत है कि सच्चा संत और सुजान व्यक्ति वही जो पक्ष-विपक्ष के मतांतर में न पड़कर निरपेक्ष भाव से ईश्वर भक्ति करता है और एक ही परम सत्ता को स्वीकारता है।
❢ कबीर ने ऐसा इसलिए कहा क्योंकि संसार एक कुत्ते के समान है जो हम कभी भी कोई अच्छा काम करना चाहेंगे तो उस पर अपना टिप्पणी करेगा जो कि एक कुत्ते का काम है कि कोई कुछ भी करता है तो वह भोगता है
❢ कवि के कहने का आशय यह है कि विपलश के कारण सारी दुनिया ईश्वर को भूलती जा रही है और हिंदी मुसलमान के भेदभाव में फसती जा रही है ।
निलिखित काव्यना को पढ़कर प्रश्नी का उत्तर दीजिये-
हस्सी चढ़िये ज्ञान को, सहज दुलीचा डारि।
स्थान रूप संसार है , भूकन दे झख मारि ।।
पखा पखी के कारने ,सब जग रहा भुलान ।
निरपख होई के हरिभजै सोई संत सूजान ।।
1- पखा-पखी से कवि का क्या तात्पर्य है ?
2- कवि ने संसार को स्थान के समान क्यों कहा है ?
3- सब जग रहा भुलान का क्या अर्थ है ?
- पखापखी का शाब्दिक अर्थ है पक्ष-विपक्ष अर्थात् मत और मतांतर का विभेद। कबीर का मत है कि सच्चा संत और सुजान व्यक्ति वही जो पक्ष-विपक्ष के मतांतर में न पड़कर निरपेक्ष भाव से ईश्वर भक्ति करता है और एक ही परम सत्ता को स्वीकारता है।
- कबीर ने ऐसा इसलिए कहा क्योंकि संसार एक कुत्ते के समान है जो हम कभी भी कोई अच्छा काम करना चाहेंगे तो उस पर अपना टिप्पणी करेगा जो कि एक कुत्ते का काम है कि कोई कुछ भी करता है तो वह भोगता है
- कवि के कहने का आशय यह है कि विपलश के कारण सारी दुनिया ईश्वर को भूलती जा रही है और हिंदी मुसलमान के भेदभाव में फसती जा रही है ।